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दोहा
१४. सात दिवस हो 'खेरखै' सात 'खिंवाड़े' सार ।
फरस्या दो पुर बीच में 'सिवास' नै 'बणदार' ।। १५. 'जाणुंदे' दो दिन रही, 'कारारी' इक रात ।
'बड़े बिठोड़े' युगल दिन, इक 'चोबाऱ्यां' ख्यात ।। १६. खरै मतै गुरु ‘खारच्यां', दूजै दिन 'दूधोड़' । 'भैंसाणै' भल भलकता, स्वामी 'सोजतरोड़' ।।
'खुली किस्मत कांठा री रे। एकाणूं री साल मिली, गुरु- करुणा भारी रे।।
१७. जठै बिछायत ठाम ठाम बांवल- कांटा री रे। रात-विरात विराट खटाखट धुन रांठां री रे।। १८. मेदपाट पाड़ोस ठोस रचना घाटां री रे। ठोर-ठोर धव- खदिर- पलाश राश भाटां री रे।। १६. अल्प ऊंडिया कूप सूंडिया' डारी - डारी रे।
खींचे नीर गती विषमी धोरी वृषभां री रे।। २०. समी जमी कोरा जल-धोरा सींचे वारी रे।।
निपजै नाज धनोधन जौ गेहूं अरु ज्वारी रे।। २१. जग्यां जग्यां भरमार नदी नाळां-खाळां री रे।
लंबा लंबा पड़या सेरिया एक गडारी रे ।। २२. जन्म, निष्क्रमण ं, स्वर्ग-भूमि भिक्षू बाबा री रे। तेरापंथ तपै कांठा री महिमा सारी रे।।
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१. लय: मनवा ! नांय विचारी रे
२. सूंडिया कुआं वह होता है, जिसकी चरस उलीचने के लिए किसी व्यक्ति की अपेक्षा नहीं होती । कुएं की जगत के पास पहुंचते ही वह स्वयं उल्टी होकर पानी उलीच देती है ।
३. कंटालिया
४. सुध ५. सिरियारी
६६ / कालूयशोविलास-२