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५. संयोजित पाणी-युगल, एकमना अकिलेश।
जाणक मानव लोक में, राणो है अनिमेष ।। ६. अवलोकी अवसर उचित, जीवनयुत जीमूत।
सघन श्याम गगनांगणे, सज्ज खड्यो साकूत।। ७. हरतु हरतु मेऽघं मुनिप! राणाजी री लार। __ कटै कुटिल मम कालिमा, बोलै मिष गरजार।। ८. आरंभ्यो उपदेश वर, भव-विरक्तता हेतु।
सभी सजग सज्जन सुणै, गुरुवाणी शिव-सेतु।।
'राजन् ! सुंदर अवसर पाय, काय अब उद्धरो रे लोय। खिण लाखीणी जावै रे लोय।।
६. राजन्! लख चौरासी-वासी प्राणी पाहुणो रे लोय,
मानव भव में आयो रे लोय। राजन् ! आर्य देश कुल वेश प्रवर प्रभुता सुणो रे लोय।
आयुः लम्बो ल्यायो रे लोय।।। १०. राजन्! अंग अरुज अरु संग सुगुरु रो सांतरो रे लोय।
__ जगी तत्त्व-जिज्ञासा रे लोय। राजन्! घूणाक्षरवत साबत सामग्री करो रे लोय,
अब तो सब सफलाशा रे लोय।। ११. राजन्! यौवन-धन-मगरूरी कूरी नां करो रे लोय,
क्षणभंगूरी काया रे लोय।। राजन्! घटत-बढ़त री छाया माया रो सरो रे लोय,
मत नां मन लोभाया रे लोय।। १२. राजन्! चंचल चपला चाल लालललना-श्रयी रे लोय।
संगम स्वाल सुजाणो रे लोय।। राजन् ! क्षणिक भावना परिजन री ममतामयी रे लोय।
___ नाहक स्थिरता ठाणो रे लोय।। १३. राजन् ! पुद्गल-कलना सकल चलाचलता भजे रे लोय।
बिछुड़न-मिलन स्वभावै रे लोय।
१. लय : भविकां! नृप नी बेटी गुण नी पेटी
उ.४, ढा.१३ / १११