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ढाळः १२.
दोहा
१. इक-बे घंटा में जमी, पुनरपि हालत मूल।
अश्विनि रघुनंदन कहै, अपणे मत अनुकूल।। २. यद्यपि तन टिकसी नहीं, तो पिण निश्चित बात।
कहणी मुश्किल, सुगुरु रो अजब-गजब है गात।। ३. ब्रह्मचर्य रो शौर्य है, गुरुवर-अंग अथाग। __कठिन कठिनतम पावणो, पूज्य-आत्मबल-थाग।। ४. फिर डाक्टर अश्विनिकुमर, हृदय-परीक्षण हेत।
यंत्र लगा देखण लग्यो, दिल-धड़कन-संकेत।। ५. के देखै घोचा लगा, मिटी न थारी शंक। ___ कभी न धड़कै काळजो म्हारो कहूं निशंक।। ६. अनुपम अतुल पराक्रमी, इसो न दीठो अन्य। .. तेरापंथ-भदंत रो है विरतंत अनन्य।। ७. सूर्योदय स्यूं सांझ लों, एकसरीखी भीड़।
देव-दिदार निहारणे, छण ही मिलै न छीड़।। ८. ज्यूं-त्यूं एक'र दरस कर, जाण्यो जीवन धन्य।
अवसर री सेवा हुवै, अनुपम और अनन्य।। ६. स्थानांतर स्यूं भी श्रमण-श्रमण्यां आई चाल'।
चातुर्मास विहार री आगम-आज्ञा भाल।।
देखो भादूड़ा री छठ अणतेड़ी नेड़ी आवै रे, जिणरो वरणन करतां अक्षर घड़तां जी घबरावै रे। जी घबरावै मन घबरावै विरह बढ़ावै रे।।
१०. उदिता चौथ तिथी मुदिता-सी रही जमावट सार, दिन भर श्री गुरुदेव शरीरे सायं श्वास-प्रसार।
सारी रात जगावै रे।।
१. देखें प. १ सं. ५६ २. ठाणं ५।१०० ३. लय : म्हारो घणां मोल रो माणकियो
२१२ / कालूयशोविलास-२