________________
उसके बाद उसे फांसी दो।'
पंचशिख नाम सिंह का है। सिर पर पांच शिखाएं होने के कारण वह दुश्चरित्र युवक भी पंचशिख हो गया। दोनों पंचशिखों में जो अन्तर है, वह स्पष्ट है।
८. 'लोकनाथ' समस्त पद है। इसमें समास दो प्रकार से होता है। तत्पुरुष समास की पद्धति से इसका विग्रह होगा-लोकस्य नाथः लोकनाथः-लोक का स्वामी। बहुब्रीहि समास की पद्धति से इसका विग्रह होता है-लोकः नाथो यस्य-लोक जिसका नाथ है, वह व्यक्ति।
तत्पुरुष और बहुब्रीहि समास से निष्पन्न दोनों लोकनाथ शब्द शाब्दिक दृष्टि से एकसमान होने पर भी अर्थ की दृष्टि से पूरा विपर्यास रखते हैं।
६. आत्मविकास की चौदह भूमिकाओं में आठवीं भूमिका का विशेष महत्त्व है। वहां से आगे बढ़नेवाले जीवों की दो श्रेणियां हैं-उपशम श्रेणी और क्षपक श्रेणी। उपशम श्रेणी से आगे बढ़नेवाले मनुष्य ग्यारहवीं भूमिका तक पहुंचते हैं, पर उन्हें वहां से लौटना पड़ता है। जो व्यक्ति क्षपकश्रेणी लेकर आगे बढ़ते हैं, वे चौदहवीं भूमिका तक पहुंचकर निश्चित रूप से मुक्त हो जाते हैं।
श्रपकश्रेणी लेनेवाले व्यक्तियों के विश्लेषण में यह स्पष्ट निर्देश है कि एक समय में इतने पुरुष, इतनी स्त्रियां, इतने कृत्रिम क्लीव क्षपकश्रेणी लेते हैं। क्षपकश्रेणी लेने वाले पुरुषों और कृत्रिम क्लीवों का जब मोक्ष होता है, तब स्त्री का मोक्ष क्यों नहीं होगा?
इस संदर्भ में यह कहा जाए कि स्त्री वेद में मुक्ति का निषेध है, तो इस तथ्य से कौन असहमत होगा? क्योंकि मुक्ति न स्त्री वेद में होती है और पुरुष वेद में। लिंग का जहां तक प्रश्न है पुरुषलिंग या स्त्रीलिंग कोई भी मुक्ति में बाधक नहीं है। १०. गोम्मटसार, जीवकांड, विचार ६।६२६-६३१ । १. होति खवा इगि समये बोहियबुद्धा य पुरिसवेदा य।
उक्कुसेणठ्ठत्तर-सयप्पमा सग्गदो य चुदा। २. पत्तेयबुद्ध तित्थयरत्थि णउंसय मणोहिणाण जुदा। ____ दस छक्क वीस दस वीसट्ठावीस जहाकमसो।। ३. जेट्ठा वर बहु मज्झिम ओगाहणगा दु चारि अद्वैव ।
जुगवं हवंति खवगा उपसमगा अद्धमेदेसि ।। ११. माता अपने पुत्र को आदर्श व्यक्ति बनाना चाहती थी। उसके जीवन का आलम्बन एकमात्र वही पुत्र था। वह उसके खान-पान, अध्ययन आदि सब
परिशिष्ट-१ / २७१