Book Title: Kaluyashovilas Part 02
Author(s): Tulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
Publisher: Aadarsh Sahitya Sangh

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Page 384
________________ समकित चारित्र खोवै करी कलेश। दुर्गति केरी साई हो टाळोकर पक्की ले लीधी, आल पंपाळज बोलै हो, टाळोकर लज्जा तज दीधी।। * महिला रो मेवासी हो लसकरियो चाल्यो चाकरी। ३/२ पायल वाली पदमणी, हे नाजु म्हारी गलियन मत आव। थारी पायल बाजणी, है म्हारे आलीजा रो बुरो स्वभाव।। अन्तर ढाळ ३/२, ३/१३ सुणो भव्य प्राणी रे ! चंद नरिंद संबंध, सरस चित ठाणी रे।। ध्रुव. राजा राणी रंग में रे खेलै अनोपम खेल। नवली दीठी नारियां तिहां शशि वदनी गज गेल ।। सुणो भव्य... 37३ सहनाण पड्यो हथलेवै रो हिंगळू माथे में दमकै ही, रखड़ी फेरां री आण लिया गमगमाट करती चमकै ही। कांकण डोरा पैरां मांही, चुड़लो सुहाग लै सुघड़ाई, मैंहदी रो रंग न छूट्यो हो था बंध्या रह्या बिछिया पांही।। अन्तर ढाळ रूडै चन्द निहालै रे नवरंग नारी चेष्टा। ध्रुव. राणी नव पल्लव नव कुसुमां निरखै तिहां वनराजी। ते शोभाये सुरपति नो वन ऊर्ध्वलोक गयो लाजी।। रूडै... ३/३ ३/३ अन्तर ढाळ बायो गुलाबसाही केवड़ो। केवड़े री छबी गुलजार, म्हारा बनड़ा ! बायो गुलाबसाही केवड़ो।। ध्रुव. नवल बनै रे व्याव में खूखड़ला सराइजै, सूंखड़ला में केवड़ो है तेज, म्हारा बनड़ा ! बायो गुलाबसाही केवड़ो।। ३८२ / कालूयशोविलास-२

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