Book Title: Kaluyashovilas Part 02
Author(s): Tulsi Aacharya, Kanakprabhashreeji
Publisher: Aadarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 360
________________ हैं। मैं अपने शब्द वापस लेता हूं। अब जैसा आप निर्देश देंगे, करता रहूंगा।' कालूगणी ने उनको पुनः पुस्तकें लौटा दी और अग्रगामी के रूप में ही विहार करने का निर्देश दिया। 'बड़ों से निवेदन करना चाहिए, पर उनके सामने अति आग्रह न हो', यह नीति का सूत्र है। १४६. मोटेगांव के एक परिवार से तीन सदस्य दीक्षित हुए-मुनि चंपालालजी, उनकी संसारपक्षीया धर्मपत्नी फूलांजी और पुत्री राजकंवरजी। फलांजी दीक्षित होने से पहले वर्षों तक सेवा में रही थीं, पर उनकी प्रकृति के बारे में सही जानकारी नहीं हो सकी। दीक्षा के कुछ समय बाद ही उनकी अड़ियल और विचित्र प्रकृति सबके सामने आ गई। उनके विचित्र व्यवहारों को देखने वालों का अनुभव है-ऐसा व्यक्ति तो सैकड़ों-हजारों में एक ही होता है। फूलांजी की अड़ियल प्रकृति के कुछ बिंदु हैं-रोना ही रोना, मुंह से अनर्गल बकना, कभी कुछ नहीं खाना और कभी बहुत अधिक खाना। बात-बात पर वे साध्वियों को तंग करने लगीं। बीसों-पचीसों साध्वियों के लिए लाया हुआ भोजन वे अकेली कर लेतीं। पता नहीं और भी क्या-क्या करती थीं। स्थिति की विषमता को ध्यान में रखकर साध्वीप्रमुखा कानकुमारीजी ने इस संबंध में कालूगणी से निवेदन किया। कालूगणी ने उनको काफी समझाया, आश्वासन दिया, अनुशासन और वात्सल्य का मिश्रित प्रयोग किया, पर उनकी मनःस्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आया। गुरुदेव ने उनको यहां तक फरमा दिया कि तुम अपनी साधना करो। साधुत्व पालने की नीति होगी तो तुम्हें कोई कठिनाई नहीं होगी। ये सब साध्वियां तुम्हारी सेवा करेंगी। इतना कहने के बावजूद भी फूलांजी के स्वभाव में कोई अंतर नहीं आया। कालूगणी ने उनके संसारपक्षीय पति मुनि चंपालालजी को उपालंभ देते हुए कहा-'तुम इतने साल इसके साथ रहे और हमें इसकी प्रकृति के संबंध में कुछ बताया नहीं।' मुनि चंपालालजी बोले-'गुरुदेव! स्थिति की इस भयंकरता का मुझे बिल्कुल पता ही नहीं था। अब तो इसका निर्वाह आप ही कराएंगे।' वि. सं. १९८७ में आचार्यश्री शेषकाल में बीकानेर प्रवास कर रहे थे। उस समय एक बार फूलांजी आपे से बाहर हो गईं। उस स्थिति में भी कालूगणी ने उनको निभाने का आश्वासन दिया, पर वे अपने-आपको संभाल नहीं पाईं। गुरुदेव ने स्थानीय वरिष्ठ श्रावक सुमेरमलजी बोथरा को याद कर उनके सामने सारी स्थिति रख दी। बोथराजी ने फूलांजी को सब प्रकार से समझाया, पर सब व्यर्थ । आखिर गंगाशहर में कालूगणी ने साध्वी झमकूजी को उन्हें संघ से अलग कर ३५८ / कालूयशोविलास-२

Loading...

Page Navigation
1 ... 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420