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३५. यूं आश्वासियो रे लोय, दिल विश्वासियो रे लोय,
उपकृति-स्मृति में रे, नहिं दुष्कृति पर विश्रमूं। ढाळ त्रयोदशी रे लोय, रूं-रूं में बसी रे लोय, मोहन मूरति रे, 'तुलसी' साहस स्यूं खमूं।।
ढाळः १४.
लावणी छंद १. छत्तीस मिनट गुरु अगल-बगल म्है सारा,
है प्रवहमान मध्यस्थ भाव की धारा। अब नव परिवेश परिष्कृत अंग कियो है,
अति क्लांत श्रांत सगळां रो सहज हियो है।। २. आ मगन कहै-गुरु-शव व्युत्सर्ग करावो,
'वोसिरे वोसिरे' शब्द स्वमुख उचरावो। कर रश्म अदा ध्यानस्थ खड़ा सब ध्यावां, चउवीसत्थव में ज्यूं-त्यूं हृदय जमावां ।।
दोहा ३. अब श्रावक समुदाय मिल, मेल्यो सगळो साझ।
पूज्य देह संस्कार हित, अनुभव रै अंदाज।। ४. रंग-भवन बी रात में, जगी झिगामिग ज्योत। ___ अंधारो सारो मिट्यो, जाणक रवि-उद्योत।। ५. तलै नीचलै चोक में, गुरु-तन पट्टासीन। ___ चलै भजन-कीर्तन समन, रजनी भर संगीन।। ६. आवै अवलोकन सघन, लोक सहस्र-सहस्र।
जनप्रवाह जलवाह ज्यूं, बहतो रह्यो अजस्र।। ७. कारीगर सारी निशा, भारी कियो प्रयास।
रथी ग्रथी मतिपूर्विका, सुरविमान सव्यास।। ८. उदियापुर स्यूं आवियो, शवयात्रा रै काज।
सज्जित राजलवाजमो, समुचित अवसर साझ।। ६. आसपास को और भी, मेल्यो मुरतब आन।
यूं करतां आयो समय, सातम को मध्यान।।
उ.६, ढा.१३, १४ / २२१