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१६. रान फता अवतार पता को, कविजन करै बयान।
सो पिण कविराजा री बाड़ी भेट्या गुरु मघवान।। १७. मघव-शिष्य श्री कालू, आप फते की हो संतान।
बा ही विधि राखो महिमागर! ओ अमूल्य ओसान।। १८. हार्दिक इच्छा स्यूं दी स्वीकृति हिन्दु-सूर्य' सह मान।
जैन-सूर्य रा दरसण करणां जीवन-जागृति जान।। १६. महताजी रु मुरड़ियाजी गुरु-चरणां प्रणती ठान।
राणाजी री राय सुणाई आकर्यो गुरु-ध्यान।। २०. शुक्लाषाढ़ चौथ दिन सांझे छव बाजे अनुमान।
मोटर री असवारी धारी मेदपाट-भू-मान।। २१. राज लवाजम संग सुरंगो चंगो अति चोगान।
सद्गुरु-सम्मुख उन्मुख आवत नावत सिर नतिवान ।। २२. पट्टासीन प्रवीण-शिरोमणि अगणित गुण-गरिमाण। _सुरमणि व्योममणीवत निरखत नरपति हित कल्याण।। २३. विधियुत वन्दे मन आनन्दे भूपति तज अभिमान।
तूर्योल्लासे ढाळ बारमी 'तुलसी' मधुरी तान।।
ढाळः १३.
दोहा १. एक ओर आसित अहो, मेदपाट-महिपाल। ___एक ओर भासित-महो, भैक्षवगण-भूपाल ।। २. निज लवाजमै राजतो, मेदपाट-महिपाल।
व्रती-व्रात-विभ्राजतो, भैक्षवगण-भूपाल ।। ३. रान प्रताप प्रताप को अंश भूप भूपाल। ___भान भिक्षु भिक्षूपती-वंशज कालु कृपाल।। ४. पर राणा भूपाल तो, मेदपाट-महिपाल।
मूलचंद कुलचंद लो, अखिल विश्व-प्रतिपाल ।।
१. देखें प. १ सं. २१ २. महाराणा प्रताप के बाद उदयपुर के राजाओं को प्रदत्त उपाधि। ३. कालूगणी
११० / कालूयशोविलास-२