________________
२१. राजन्! भू-भूपाल, अभ्र-धाराधर उभय ही रे लोय।
एक साथ गुरु-वाणी रे लोय। राजन्! सुणी सुहाणी शांत समन समताग्रही रे लोय,
चित्रित है सब प्राणी रे लोय।। २२. राजन्! अणसमझू आंदोलित मन संशय धर्यो रे लोय,
देखत घन गहराई रे लोय, राजन्! बाधक बणसी ओ बिच में अब ओसर्यो रे लोय,
पिण रहस्य कुण पाई रे लोय? २३. राजन्! खेचल खूब हुई उपदेश सुणावतां रे लोय,
यूं कहि वंदन साझी रे लोय। राजन् ! तामझाम' असवारी गुरु गुण गावतां रे लोय,
चाल्या महाराणाजी रे लोय।। २४. राजन्! आभ्यंतर आलय आया गुरुदेवजी रे लोय,
श्रमण-संघ संघाते रहे लोय। राजन्! आ तेरहवीं संपूरण स्वयमेव जी रे लोय,
ढाळ सुविस्तृत बाते रे लोय।।
ढाळः १४.
दोहा १. राणो अति राजी-हृदय, पहुंचै बाड़ी बार।
उमड़-घुमड़ कर मेहलो, बरसै धारासार ।। २. गाज हरस आवाज है, अश्रुधार आसार।
सफल मनोरथ हो मुदिर, उत्तार्यो सिर-भार।। ३. हरी कालिमा तिण घरी, नवलि धवलिमा धार।
जाणक जाग्यो जोशयुत, सद्गुरु रो उपकार।। ४. परख्यो परतख पारखू, मुदित-मुदिर-मन-भाव।
इण कारण अब तक रुक्यो, इण कारण बरसाव।। ५. राणाजी निज महल में, लहि अमन्द आनन्द।
करी प्रशंसा पूज्य री, सांभळतां जन-वृन्द ।।
१. पालकी विशेष
उ.४, ढा.१३,१४ / ११३