Book Title: Jinvijay Jivan Katha
Author(s): Jinvijay
Publisher: Mahatma Gandhi Smruti Mandir Bhilwada

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Page 9
________________ संक्षिप्त स्वरूप २००-३०० पृष्ठों में आलेखित हो जायगा, परन्तु ज्यों-ज्यों प्रसंग मन के सन्मुख उपस्थित होते गये त्योंत्यों उनकी विशालता और विशिष्टता का खयाल होता गया। जिस जीवन के विषय में कोई ममत्व या महत्व का भाव कभी पैदा नहीं हुआ था, उस जीवन ने अनुभव किये हुए विविध प्रकार के संस्मरणों के चिन्तन ने, मन को कुछ मोहान्वित कर दिया और उन अनुभवों को इस प्रकार लेखबद्ध करने को प्रेरित कर दिया। इस दृष्टि से मैं जब सोचने लगा तो मुझे अनुभव होने लगा कि, इस जीवन ने जो विविध प्रकार के अनुभव किये हैं और जिन भिन्न-भिन्न कार्यों के क्षेत्र में विचरण किया है, उनका स्वरूप तो बहुत विशाल है और वे सब, अब इस जीवन के अन्त समय के निकट पहुँचने पर, लेखबद्ध किये भी जा सकेंगे या नहीं, इसकी कोई कल्पना न होने से, जितने भी जीवन प्रसंगों को मै प्रारम्भ में लिपिबद्ध कर सका हूँ उन्हीं को, इन पृष्ठों में अंकित कर प्रकाशित कर देना उचित समझा है। पाठक गण समझ सकेंगे कि कथा का जो अंश उनके हाथ में है वह इस जीवनी का केवल भूमिका रूप ही है। इस अंश में केवल मेरे बाल्यकाल के संस्मरण और सामान्य अनुभवों का उल्लेखन है। मेरे जीवन प्रवास का वास्तविक स्वरूप सूचित करने वाले, मार्गविचरण का, विविध विवरण तो, इस कथा में वर्णित अन्तिम प्रसंग के बाद ही शुरू होने वाला है। विक्रम संवत् १९५६ में मैंने जैन धर्म के एक सम्प्रदाय की साधु दीक्षा ग्रहण की। उस समय मेरी उम्र प्राय: १५ २] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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