Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(४) श्रीनहिलपुरीवासी, शीतलःशीतलो जिनः ॥ विनासंनारसंशोनी, शीतलान्नः करोतु सः१० ___ अर्थः-शोनायमान नदिलानामनी पुरीमां निवा स करनार, शांत अने कांतिना समूहथी शोनता. शीतलनामना जगवान, अमोने शांति करो ॥१०॥ दिश्यानेयांसिसःश्रीमान्,जिनःश्रेयांस उच्चकैः। चमत्कारकरस्फार,प्रनाप्राग्नारनासुरः॥११॥ ___ अर्थः-शोनावाला चमत्कारने करनार विस्तारवा ली कांतिना समूहथी प्रकाशमान, ते श्रेयांस नाम ना श्रेष्ठ नगवान कल्याणोने थापो॥ ११ ॥
॥ इंश्वजा बंद ॥ भ्राजिष्णुचंचघरपद्मवर्णः, प्रोत्फुल्लसर्प तस्फुटपद्मनेत्रः ॥ सत्पद्मसंशोनिनखा रुणश्रीः,श्रीवासुपूज्यःकिल मां पुनातु॥१॥ अर्थः-प्रकाशमानचमकता उत्तम कमलसरखा वर्णवा ला,प्रफुन्नित प्रसरता स्फुटकमल समान नेत्रवाला, अ नेनत्तम कमलसमान शोनायमान नखोनीरताशनी शो जावाला,श्रीवासुपूज्यनामना नगवान् मनपवित्रकरो॥

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