Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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( २८ ) पापथी वलि नदी कोई त्रीजुं ॥ नवकार समो नदि मंत्र, नदि कोई तंत्र, नहि कोई साज, न दि कोई साज ॥ ज० ॥ २ ॥ सहकार तरुमां सार, बराबर यार, कटुं बुं साचं, कटुं बुं साचुं ॥ तिम वासुपूज्य जिन देव जोई हुं राचुं ॥ नहि देव जगतमां थाय, विद्रुम सम काय, बीजो को ई तेवो, बीजो कोई तेवो ॥ श्रीवासुपूज्य मादा राज जिनेश्वर जेवो ॥ तसगुण गणसरनी पा ल, रमे बे मराल, सुखके काज, सुखके काज ॥ जय० ॥ ३ ॥ इति श्री वासुपूज्य जिन० ॥ ॥ अथ त्रयोदश श्री विमलनाथ जिनस्तवनं ॥
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॥ विमलाचल विमला प्राणी ॥ ए देश ॥ ॥ प्र विमलनी विमला वाणी, धरो हृदयकमलें तुमें प्राणी, एतो गुणगण सकलनी खाणी, ए तो मिथ्या तिमिर मीटाणी ॥ विमल जिननाथने न वि सेवो, नहिं देव जगतमां एहवो ॥ विमलजि न० ॥ १ ॥ त्रण लोक तपा तुमें स्वामी, तीर्थ

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