Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 47
________________ (३५) लांग ॥ पार्श्व॥॥ ग्ल गवशी मादा विकरा ल, मोद पिशाच जगतनो काल, तेंप्रनु निग्र द कीधो लाल, नलां सुधि मंत्रवादी परें रे॥ नलां०॥ पाच ॥ ३ ॥ अश्वसेन कुलकमल उल्लास, करवामां प्रनु रवि प्रकाश, वामा न दरदरीमां खास, नलां केशरीकिशोर सम रे॥ नलांग ॥ पार्श्व ॥४॥ श्वाकु कुलनूपण समान, गतदूषण दूरीकृतमान,जनय पद जस हंस समान, नवकूपनीवारो रे॥नापाणाया ॥अथ चतुर्विशति श्रीमहावीरजिनस्तवनं ॥ ॥सिहाचलगिरि नेट्या रे, धन्य नाग्य द मारां॥ ए देशी॥ महावीरजिन जग प्यारा रे, मनमोहनगारा ॥ त्रिशलानंदन प्यारा रे, म नमोहनगारा ॥ ए आंकणी॥प्राणत देवलो कथी चवीया, जगजनना आधारा ॥ त्रिशला नदरसरोज हंस ज्युं, स्वामी लह्यो अवतारा रे॥ मन ॥१॥ माता चौद सुपन तव देखे,

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