Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(४२) से, हारे आदिनाथ जगतने प्रकासे, दारे नय जन्म मरणने निकासे, दारे एतो जगतना तात ॥विमला ॥७॥ अणदिलपुर पाटणयकीसं घलावे, हारे ऊवेरचंद गुमानचंद नावें, दारे संवतवेद अब्धि सुहावे, दारे नंद इं७ मिलाय ॥विमला ॥७॥ कृष्णपद पोषमासनी तिथि सारी, हारे दशमी लागे मुने प्यारी, हारे मा नुं लक्ष्मी विजय करनारी, दारे नेट्या आदि जिणंद ॥ विमला ॥ ए॥इति ॥
॥ अश्य वितीय श्रीसिहाचलस्तवनं ॥ ॥आव्यो गिरिशरणे तारे नवनटकी रे॥ अब लीजो मुमकुं तारी ॥ आव्यो० ॥ पुं मरीक गुरु तारी रे, पुंमरीक पद धारी रे ॥ मु नि पंचकोडि सहचारी, चैत्री राका अजुवाली ॥ आव्यो॥१॥ धर्मराय मुख पांचे रे, पांम व नली नाते रे ॥मुनि वीश कोडि संघातें, प रणावी शिव निज दाथे॥आव्यो॥२॥ पुंम

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