Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 67
________________ (५५) मेंत्राणा मांदि नाथका, दरिसनकुं धसनां चा दिये। हंसा सुण मेरा तेरे नहिं, ओर जगे न सनां चादियें॥ आदि०॥४॥इति ॥ ॥ अथ श्रीपाटण मंमण श्रीशांतिनाथस्तवन। ॥अपने पदकुंतज कर चेतन, परमें फसनां ना चाहियें ॥ए चाल॥ शांतिनाथ महाराज कुं प्राणी, हृदय कमल रखना चाहियें॥ एतर ण तारण हे वचनरस, जिनजीका चखना चा दियें॥शांति॥१॥ अन्यदेव कामी क्रोधी कुं, त्यागकें उर नखना चाहिये, करुणा शांत वदन दे जिसको, आप जरुर देखना चाहिये ॥शांति ॥ पांचमा चक्री सोलमा स्वामी, देख हर्ष लेना चाहियें॥ए खटखम बंमी बने महा, योगी निरख लेना चाहिये ।। शांतिः ॥ ॥३॥पाटण सहेर फोफलीया वाडे,नाथ लख लेना चाहिये।ए परमप्रनु दे सीका,नामकुंले रखना चाहिये। शांति ॥४॥ शुन नाव सम

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