Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION WWW.SANSKRITDOCUMENTS.ORG/TFIC
FAIR USE DECLARATION
This book is sourced from another online repository and provided to you at this site under the TFIC collection. It is provided under commonly held Fair Use guidelines for individual educational or research use. We believe that the book is in the public domain and public dissemination was the intent of the original repository. We applaud and support their work wholeheartedly and only provide this version of this book at this site to make it available to even more readers. We believe that cataloging plays a big part in finding valuable books and try to facilitate that, through our TFIC group efforts. In some cases, the original sources are no longer online or are very hard to access, or marked up in or provided in Indian languages, rather than the more widely used English language. TFIC tries to address these needs too. Our intent is to aid all these repositories and digitization projects and is in no way to undercut them. For more information about our mission and our fair use guidelines, please visit our website.
Note that we provide this book and others because, to the best of our knowledge, they are in the public domain, in our jurisdiction. However, before downloading and using it, you must verify that it is legal for you, in your jurisdiction, to access and use this copy of the book. Please do not download this book in error. We may not be held responsible for any copyright or other legal violations. Placing this notice in the front of every book, serves to both alert you, and to relieve us of any responsibility.
If you are the intellectual property owner of this or any other book in our collection, please email us, if you have any objections to how we present or provide this book here, or to our providing this book at all. We shall work with you immediately.
-The TFIC Team.
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
3082
श्री जिनेऽस्तुतिरत्नाकरः ----
- न्यायांभोनिधि-आचार्यश्रीमदू-आत्मारामजी "आनंद विजयजी" महाराजके-शिष्य श्रीमल्लक्ष्मीविजयजी महाराज तिनके शिष्य-श्रीमद्हसविजयजी विरचितः
इंद्रवज्रावृत्तम् श्रीमच्चतुर्विंशतितीर्थपानाम् रम्याः स्तुतीः संस्कृतवाग्वरेण्या॥स्तोत्राणि चान्यानि म नीषिवर्या ग्रंथे ह्यमुष्मिन् किल वाचयंतु ॥
[प्रगटकर्ता] जामनगर "हरजी जैनशाला"का अध्यक्ष.
शेठ अजरामर हरजी
(मुद्रण कर्ता) श्रावक. नीमसिंहमाणक. निर्णयसागर प्रेस.
मुम्बई संवत् १९४५
सने १८८९ आ पुस्तकनो छापवानोहक कायदाप्रमाणे नोंधाव्यो छे.
र
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
deaaa
अनुक्रमणिका. स्तवननाम. पृष्ठांक. स्तवननाम. पृष्ठांक. षनदेवस्तुतिः १ अरजिनस्तुतिः अजितनाथस्तुतिः १ मलिनाथस्तुतिः ७ संनवनाथस्तुतिः २ मुनिसुव्रतनाथस्तुतिः अनिनंदनजिनस्तुतिः २ नमिनाथस्तुतिः सुमतिनाथस्तुतिः २ नेमिनाथस्तुतिः पद्मप्रनजिनस्तुतिः २ पार्श्वनाथस्तुतिः १० सुपार्श्वदेवस्तुतिः ३ वीरजिनस्तुतिः १० चंप्रनजिनस्तुतिः ३ नाषांतरकारने करि दुश् । सुविधिनाथस्तुतिः ३ कर्ताकी स्तुति. ११ शीतलनाथस्तुतिः । कर्ता तरफसें बुधजनोकुं श्रेयांसजिनस्तुतिः । प्रार्थना. १२ वासुपूज्यजिनस्तुतिः । श्रीमलिनाथस्तोत्रम् १३ विमलनाथस्तुतिः ५ श्रीयादिनाथस्तवन. १६ अनंतनाथस्तुतिः ५ श्रीअजितनाथस्तवन. १७ धर्मनाथस्तुतिः ५/श्रीसंनवनाथस्तवन. १७ शांतिनाथस्तुतिः ६ श्रीअनिनंदनजिनस्त० १५ कुंथुनाथस्तुतिः ६ श्रीसुमतिजिनस्तवन. २०
r
mr
.
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
४
४५
स्तवननाम. पृष्ठांक. स्तवननाम. पृष्ठांक. श्रीपद्मप्रनजिनस्तवन. २१ श्रीमहावीर जिनस्तवन ३ श्री सुपार्श्वनाथस्तवन. २२ श्री सिद्धाचलस्तवन ४० श्री चंप्रनजिनस्तवन. २३ द्वितीय श्री सिद्धाचलस्त ४२ श्री सुविधिजिनस्तवन २४ श्रीधर्मनाथस्तवन. ४ ३ श्री शीतलनाथ स्तवन. २५ श्रीधर्मनाथ बंद. श्री श्रेयांसनाथस्तवन १६ श्री सिधचक्रस्तवन. श्री वासुपूज्य जिनस्त० २७ श्री चंप्रन जिनस्तवन. ४६ श्री विमलनाथस्तवन. २८ श्री पार्श्वनाथदशनवस्त ४ ७ श्री अनंतनाथस्तवन. १० श्रीकेसरियानाथस्तव ०४८ श्रीधर्मनाथस्तवन. ३० श्री सीमंधर जिनस्तवन. ४८ श्री शांतिनाथस्तवन ३१ गहुंली १ चालोनेन वि. ४७ श्री कुंथुनाथस्तवन. ३२ गहुंली बीजी. धनधन० ५० श्रीअरनाथस्तवन ३३ गहुँलीत्री जी सुणप्राणीरे ५१ श्रीमल्लिनाथस्तवन ३४ दीवाली स्तवन.
५
श्री मुनिसुव्रतनाथस्त० ३५ श्रीयादिनाथ लावली. ५४ श्रीनमिजिनस्तवन, ३६ श्रीशांतिनाथ स्तवन. ५५ श्रीनेमनाथस्तवन. ३७ गहुंली वंदी जिनजी० ५६ श्री पार्श्वनाथस्तवन ३८ सवैया.
Ատ
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
TERI.
T
UMIIIITT
M
TV)
AMMA
दाM iniLIDITITILLLLLLLLLLLLLLI IIIIIIIIIILLIAN
LLLLLLLLLLLLLLLLLLLLTI
IMILLLLLLLLLLLiIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIIUILL
जैनपाठशाला.
-
Fal
STUTOMATIL...........DIRLUDIDOLUTIM
I T
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
/o/lal.
-
Hilly
मालामावगानागाजावामाना
ALLPIRIDIO IBIGIPRIDIDIDI HENDIPIDIO
polelon
T-ICID-2/0/
ORIGIPRIDDI ODIPIPR elaiaioidPIRIDI2 Didiनवीन
VXIVY
-
AMPAIN
प्राका
-
-
NA
Cam
.
ear...:
L
H
Chincim
27.
A
-
न्याय भोनिधि मुनि आत्मारामजी पानंद विजयजी
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ अथ मुनि श्रीहंस विजयजी रुत ॥ ॥चतुर्विशति जिनस्तुतिः स्तवन रत्नाकर ग्रंथ।
॥ अनुष्टुब् वृत्तम् ॥ स नानेयो जिनो जीया,दूरुस्थटषलक्षणः॥ श्रीशत्रुजयतीर्थस्य, मस्तके मुकुटोपमः॥१॥
अर्थः-शोलायमान शत्रुजयनामना तीर्थना म स्तक उपर मुकुटसमान अने साथलमां वृषजना चिन्ह वाला एवा नाजिराजाना पुत्र जे ऋषनदेव नगवान् ते, जय पामो॥१॥ वन्देऽहम जितं देवं, लीलया जितमन्मथम् ॥ कर्मवल्लीविनाशाय,कुगरसदृशं विनुम् ॥२॥
अर्थः-लीलायें करी कामदेवने जीतनार अने कर्म रूपी वेलने नाश करवामां कुगर (कुवाडा) समान समर्थ,अजितनाथ नगवानने हुँवंदना करुं बुं ॥२॥
श्रीमत्संनवनाथाय, नवनात्तिहराय च ॥ तृतीययोगिनायाय,नमो विश्वैकनानवे॥३॥ अर्थः-त्रण जुवननी पीडाने हरनार त्रीजा एवा अने
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
( 2 )
योगियोना स्वामी 'त्रीजातीर्थकर' जगतमां एक सूर्यस मान, शोजायमान संभवनाथ भगवानने नमस्कार हो । तुर्यकं जिननाथं च, अभिनंदननामकम् ॥ स्वजन्मावसरे मेरो, प्राप्तं नौमि सुनिर्मलम् ॥४॥
अर्थः- पोताना जन्मसमयें मेरुपर्वत उपर प्राप्त थयेला अत्यंत निर्मल एवा श्री अभिनंदननामना चो या तीर्थकर भगवानने हुं नमस्कार करूं बुं ॥ ४ ॥ सुमतिं सुमतिर्देया, त्पञ्चमः परमेश्वरः ॥ तनोतु वः सुखान्येष, संसारांबुधिपारगः ॥ ५ ॥
अर्थः- सुमतिनामना पांचमा तीर्थकर, तमोने बु दिने खापजो. तेमज संसाररूप समुना पारने पा मेला एज परमेश्वर, तमोने सुखने विस्तारो ॥ ५ ॥ पद्मप्र प्रभुर्नाम, तनोतु विमलां श्रियम् ॥ मोदमल्लजयेनेव, जाति यः कमलद्युतिः ॥ ६ ॥
यर्थः - मोहरूपी मननो जय करवाथीज जाणे होय नहि ? एम कमलसरखी सुंदर कांतिवाला जे नग वान शोना पामे बे. ते पद्मप्रननामना तीर्थकर, नि र्मल लक्ष्मीनो विस्तार करो ॥ ६ ॥
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीयाः सुपार्श्वदेव त्वं, सुवर्णद्युतिधारकः ॥ मोहांधानां जडानां च, तमोनाशाय नास्करः। ___ अर्थः-सुवर्णसमान कांतिने धारण करनार, मो हथी आंधला अने जडबुद्धिवाला पुरुषोना, अज्ञा नरूप अंधकारने मटाडवामां सूर्यसमान, हे सुपार्श्व देव नगवन ! तमें जय पामो ॥ ७ ॥ समुल्लसितशोनाट्य, ज्ञास्यश्वंलाग्नः॥ चंञ्चारुस्फुरबायः, पातु चंप्रनः प्रनुः॥७॥
अर्थः-अत्यंत नन्नास पामेला, शोनाथी युक्त चं इमा समान मुखवाला चश्ना चिन्हवाला अने चं नी पढ़ें सुंदर तथा चमकती कांतिवाला, चंप्रन ना मना परमेश्वर रहाण करो ॥ ७ ॥ स्फुरम्यतमश्रीकः, सर्वदर्शी जिनोत्तमः ॥ आंतरारिविघाताय, ददातु सुविधिर्विधिम्॥॥
अर्थः स्फुरायमान अत्यंत सुंदर शोनावाला सर्व वस्तुने जाणनार,अने जिनोमां उत्तम एवा हे सुविधि नामना नगवान्, अंतःकरणमा रहेला कामक्रोधादि शत्रुना नाश माटे उपाय आपो ॥ ५ ॥
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४) श्रीनहिलपुरीवासी, शीतलःशीतलो जिनः ॥ विनासंनारसंशोनी, शीतलान्नः करोतु सः१० ___ अर्थः-शोनायमान नदिलानामनी पुरीमां निवा स करनार, शांत अने कांतिना समूहथी शोनता. शीतलनामना जगवान, अमोने शांति करो ॥१०॥ दिश्यानेयांसिसःश्रीमान्,जिनःश्रेयांस उच्चकैः। चमत्कारकरस्फार,प्रनाप्राग्नारनासुरः॥११॥ ___ अर्थः-शोनावाला चमत्कारने करनार विस्तारवा ली कांतिना समूहथी प्रकाशमान, ते श्रेयांस नाम ना श्रेष्ठ नगवान कल्याणोने थापो॥ ११ ॥
॥ इंश्वजा बंद ॥ भ्राजिष्णुचंचघरपद्मवर्णः, प्रोत्फुल्लसर्प तस्फुटपद्मनेत्रः ॥ सत्पद्मसंशोनिनखा रुणश्रीः,श्रीवासुपूज्यःकिल मां पुनातु॥१॥ अर्थः-प्रकाशमानचमकता उत्तम कमलसरखा वर्णवा ला,प्रफुन्नित प्रसरता स्फुटकमल समान नेत्रवाला, अ नेनत्तम कमलसमान शोनायमान नखोनीरताशनी शो जावाला,श्रीवासुपूज्यनामना नगवान् मनपवित्रकरो॥
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५)
॥ नवजा बंद ॥ लसत्प्रकृष्टोज्ज्वलवजतुल्य, रदप्रनोजासि तसन्यवर्गः ॥ प्रनावरम्यं विमलं करोतु, जिनाधिनाथोविमलानिधोमाम् ॥१३॥ अर्थः-शोलायमानअत्यंत उज्ज्वल हीरासमान दांतो नी कांतिथी सनाना वर्गने प्रकाश आपनार,विमलना मना जिनेश्वर,मने प्रनावथी सुंदर तथा निर्मल करो॥
अनंतविझानमनंतनाथं, नमामि नत्त्या कृ तपापमाथम् ॥ वरोदयं श्रीजगदेकनाथ, मनंतसारातिशयाधिनाथम् ॥ २४ ॥
अर्थः-अपार झानवाला, पापोने नाश करनार, उत्तम उदयवाला शोनाथी युक्त जगत्ना एक नाथ अने अनंतसाररूप अतिशयोना स्वामी, अनंतनाथ नगवाननें दुं नक्तिथी नमस्कार करूं ॥१४॥
॥रथोता बंद ॥ स्तौमि सक्थिवरवचलाउन,मूर्तधर्ममिव धर्मनामकम् ॥ पर्वते दरिमिवाशनिश्रि तं, गर्वपर्वतचयप्रणाशकम् ॥ १५ ॥
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थः-साथलमा उत्तम वजना चिन्हवाला, पर्व तना नाश करवामां वजने धारण करनार, इंनी पेलें गर्वरूप पर्वतोना समूहोनो नाश करनार, अने देहधारी जेम धर्म होय, तेवा धर्मनाथ नगवा ननी हुं स्तुति करुं बुं ॥ १५॥
शांतिकांतिधृतिमुक्तिदं वरं, सांशं वितर मे तु सत्वरम् ॥ शांतिनाथ जिन शांतिका रक, रोगशोकनयमोहवारक ॥ १६ ॥
अर्थः हे शांतिने करनार ! हे रोग, शोक, नय, अने मोहने दूर करनार! हे शांतिनाथ जिन ! शांति, कांति, धीरज अने मुक्तिने आपनालं, तथा उत्तम एवं घणुं सुख मने तुरत आपो ॥ १६ ॥
॥ स्वागता छंद ॥ ज्योतिषांततिषु राजति सूर्य,स्तारकेषु च यथा ननु चंः॥वेगिनां मरुदिवाप्तजने षु, कुंथुनाथजिनराहि तथासौ॥२७॥ अर्थः-सर्व तेजस्वी वस्तुमा जेम सूर्य शोने से, अने ताराउमा जेम चंद शोने जे, अने वेगवाला
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
पदार्थोमां जेम पवन शोने , तेम यथार्थ बोलना राउमां ते कुंथुनाथ नगवान शोने में ॥ १७ ॥
॥ वसंततिलका छंद ॥ आलंबयष्टय वारजिनेश्वरस्यां, गुट्योदशापि पदपद्मयुगस्य यस्य॥पापौघकर्दमनिमऊदशेष जंतु, निष्कासनायदि बनुर्बलवत्तरास्ताः॥१॥ ___ अर्थः-पापना समूहरूप गारामां बुडी जाता स र्व प्राणियोने ते पापरूप गारामांथी बाहेर काढवा माटे, अरनामना जिनेश्वरना चरणकमलयुग्मनी, अत्यंत बलवाली दश अांगलीयो, जेम टेको देवानी लाकडीयो होय तेवी रीतें शोना पामे ले ॥१७॥
॥ मालिनी वृत्तम् ॥ नयनकुमदचंः कीरवर्णानकायो, बढुलसुखजयंताद्देवलोकाच्युतो यः॥ स जयति जगदीशो मल्लिनाथो जिनंजे, जनशमसुखकारः कर्मवल्लीकुगरः॥१॥
अर्थः-नेत्ररूप कुमुदनामना कमलने चंइसमान, पोपटना वर्णसमान शरीरवाला, अत्यंत सुखयुक्त
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
जयंतनामना देवलोकथी च्यवेला जगतना स्वामी, प्राणियोने शांतिरूप सुखना करनार, अने कर्मरूप वे लने नाश करवामां कुगर (कुवाडासमान) जे म निनाथ जिनें, ते जय पामे ३ ॥ १५ ॥
॥त्रोटक बंदः ॥ मुनिसुव्रतनाथ तवक्रमयोर्न,खचंमसो दश नांति विनोः॥रचिताश्व रत्नचयैर्मु कुराः,शुनमुक्तिवधूबहुकेलिकराः॥२॥
अर्थ:-हे मुनिसुव्रतनाथ नगवन् ! हे प्रनु, तमा राबन्ने चरणोना,जे दश नख ते रूपजे चंशे,ते रत्नोना समूहोथी रचेला, कल्याणकारी मुक्तिरूपी स्त्रीने थ त्यंत क्रीडा करवाना अरीसा जेम होय, तेम प्रका श पामे वे ॥२०॥
॥ शिखरिणी वृत्तम् ॥ स्फुटश्रीरोचिष्णुं शमरसनिमग्नेक्षाणयुगं, प्रस नास्यांनोज प्रदरणसमूहोङितकरम् ॥ विरक्तं रामाया निखिलजनसंतोषजनकं, नजे तं विश्वे शं नमिजिनवरं कल्मषहरम् ॥२॥
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थः स्फट शोनाथी प्रकाशमान. शांतरसमांम ग्र नेत्रयुग्मवाला, प्रसन्नमुख कमलवाला, शस्त्रौघव र्जित हाथवाला, स्त्रीथी वैराग्य पामेला, सर्व प्राणि योने संतोष थापनार, जगतना ईश्वर, अने पापने हरनार. ते नमि जिनवर (निमिनाथ नगवान) तेने हुँ नचुं बु॥ ११ ॥
॥ हरिणी वृत्तम् ॥ प्रणमत जनाः श्रीमन्नेमि विकस्वरवैनवं, प्रवणहृदयं प्राणित्राणे मनोदरतायुतम् ॥न वजलनिधौ दीपप्रायं श्रितं गिरिरैवतं, परि जनजनैःसाई त्यक्तस्वराजिमतीप्रियम॥२॥
अर्थः-हेजनो विकस्वरवैनववाला, प्राणियोना रामां तत्पर हृदयवाला बने मनोहर पणाथी युक्त, तेमज संसाररूप समुना (हीप) बेटसमान, गिरनार पर्वतमां निवास करनार, अने (परिजन) संबंधियोनी साथे पोतानी राजिमती नामनी प्रिय स्त्रीनो त्याग करनार. शोजायमान नेमि नगवान्ने तमें नमस्कार करो ॥ २२ ॥
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१०)
॥ मंदाक्रांतावृत्तम् ॥ वंदे पार्श्व प्रवरविनवं पार्श्वसंसेव्यपाश्र्वं, क ल्याणानां विपुलसदनं राजमानप्रनावम् ॥ सत्कल्पडं त्रिनुवनमनःकल्पनातुल्यदानात्, वामाकुदिप्रवरसरसीराजहंसोपमानम् ॥१३॥ ___ अर्थः-नुत्तम वैनववाला, पार्श्वनामनो यद जेना पडखांने सेवे ते तथा कल्याणोना विस्तारवाला घररूप, शोनायमान प्रतापवाला, अनेत्रण नुवन ना प्रागिनी मननी कल्पनाथी अतुल्य दान देवा थी उत्तम कल्पवृदरूप, वामादेवीना उदररूप उत्तम तलावडीमां राजहंससमान, पार्श्वनाथ जगवान्ने हुँ नमस्कार करुं बुं ॥ २३ ॥
॥शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ विभ्राजिष्णुकलाकलापकलितग्लावर्कयुग्मेन च,समक्त्या विनयान्वितेन विदिता पूजा दियस्य प्रनोः॥स श्रीवीरजिनः प्रनावनवनं श्रेयांसि दिश्यात् सदा,नंतझानविशुश्रूपकलितः कामे नपंचाननः॥३॥इति चतुर्विंशति जिनस्तुतिः
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
(११) अर्थः-विनयेंकरी युक्त अने प्रकाशवाला कीरणोना समूहोथी व्याप्त एवा सूर्य तथा चंइ ए बेदु देवें उत्त म नक्तिथी जे प्रनुनी पूजा करेली . वली प्रतापना घररूप, अनंतान बने गुरुरूपथी युक्त तथा का मदेवरूपी हाथीने मारवामां सिंह समान ते श्रीवीर जिन(श्रीवीरनगवान्)सर्वने सदाकल्याण आपो॥४॥ ॥ इति चतुर्विंशतिजिनस्तुतिनो बालावबोध संपूर्ण ॥
॥शार्दूलविक्रीडितं वृत्तम् ॥ आचार्यः परमे पदे बुधजनैराश्चर्यज ज्ञानवा, सोकानां परमप्रकाशकरणे सूर्योपमः शुध्धीः॥ शास्त्राब्जे गुणगौरवाव्यसुनगे पृथ्व्यां सदास्था पित,श्वात्माराम इति प्रकाशवदनै यात् स्वशिष्यैर्टतः ॥१॥
॥ गीति बंद ॥ लक्ष्मी विजयःशिष्य,स्तस्यानूज ज्ञानवान्सु धीः सम्यक् ॥ हंसविजय इति मतिमान्, शिष्यस्तस्यानवजुणैकनिधिः ॥ २ ॥
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१३)
॥ वसन्ततिलकावृत्तम् ॥ सोऽयं स्वनक्तिनरतो विविधैः सुपये,श्चके स्तुतिं नगवतां गुणयुक्तरूपाम् ॥ पश्चा यधात्सरलया च सुगुजराख्य, वाण्या शु काख्यधरणीत्रिदशो दि युक्ताम् ॥ ३॥
॥ अनुष्टुवृत्तम् ॥ प्रमादै घिदोपैर्वा,मनश्चापलकेन वायजा तं स्खलनंह्यत्र, तत्संशोध्यं सदा बुधैः॥४॥
अर्थः-पंमित पुरुषोयें उत्तम पदने विषे स्थापे ला, आश्चर्यकारक ज्ञानवाला, लोकोने उत्तम ज्ञान प्रकाश करवामां सूर्यसमान, गु८ बुद्धिवाला अने गु गोना गौरवथी युक्त तथा सुंदर एवा शास्त्ररूप कम लने विषे सूर्यसमान प्रकाशयुक्त मुखवाला पोताना शिष्योथी वीटायेला एवा आत्मरामनामनाथाचार्य, प्टथिवीमा सर्वदा जय पामो ॥१॥ ते आत्मारा मजीना शिष्यरूडा ज्ञानवान् अने रूडी बुद्धिवाला, लक्ष्मीविजय नामना थया. ते लक्ष्क्षीविजयना शिष्य बुद्धिमान तथा गुणोना एक नंमाररूप हंस विजय ना
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१३)
मना यया ॥ २ ॥ ते हंसविजय पोतानी जक्तिना स मूहथी, जूदा जूदा बंदोवाला एवा सारा श्लोकथी सर्व भगवानोनी गुणोथी व्याप्त रूपवाली स्तुति करता हवा. पालथी पोपटनामना ब्राह्मण, ते स्तुतिने सरल ने सुंदर गुजराती भाषायी युक्त करता हवा ॥ ३ ॥ उपर लखेली स्तुतिमां प्रमादथी बुद्धिना दो पथी अथवा मनना चपलपणाथी जे कांई उल थये ली होय ते पंमित पुरुषोयें सारी रीतें शोधवी ॥ ४ ॥ ॥ अथ श्रीमल्लिनाथ स्तोत्रम् ॥
॥ भुजंगप्रयातवृत्तम् ॥
जिनेंद्रस्य यस्यास्ति जंघायुगं च, वरेण्येंद स्तींप्रहस्तोपमं तत् ॥ समं यस्य संगुप्तजानु ६यं वै स सन्मल्लिनाथो जिनो मां पुनातु ॥ १ ॥
"
अर्थः- जेनुं जंघायुग्म जे बे, ते ऐरावत हाथीना दामनी पढें वर्तुल ने सुंदर बे, तथा जेमां बे जानु गुप्त रह्या बे, अने जे बन्नेनो थाकार सरखो बे, एवा जंघायुग्मना धारक रूडा मल्लिनाथ जिन (म लिनाथ स्वामी ) मने पवित्र करो ॥ १ ॥
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१४) ॥ नुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ सुरंनोपमं यस्य सारोरुयुग्मं, सुवर्णस्य कांच्या युतं श्रोणिचक्रमालुलढुंगवद् नाति रोमस्यराजिः, स सन्मल्लिाशा अर्थः-जेना सुंदर बे साथल कदलीस्तंन सरखा जे, जेनो मध्यनाग सुवर्णमय कांचीथी शोने जे, जे नी रोमराजि चंचल चमर सरवी शोने जे, एवा रू डा श्रीमन्निनाथस्वामी मने पवित्र करो ॥ २॥
प्रनामंमलैममितं नानिप , त्रिनिः पं तिनी राजमानं पिचंमम् ॥ विशालं वि नातिप्रनोर्यस्य वदः,ससन्मल्लि॥३॥ अर्थः-जेनुं नानिकमल,प्रनाममलें करी शोने में, जेनु उदर त्रिवलीयें करी शोनायमान ने, जेनुं वक स्थल विशाल होवाथी शोने के, एवा रुडा श्रीमन्नि नाथ स्वामी मने पवित्र करो ॥३॥
सुराजीववशजते पाणिपात्रं, जिनाधी श्वरस्य प्रनायुक्तगात्रम् ॥ध्रुवं कंबुसत् कंपीठोपमानं,ससन्मल्लिनाथो॥४॥
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१५) अर्थः-जेमनुं हस्तरूप पात्र कमलसरखं , जेम नुं शरीर नामंगल युक्त , तथा जेमनो कंठ शंख नी परें त्रिवलीविराजित ने, एवा रूडा श्रीमन्निनाथ स्वामी मने पवित्र करो ॥ ४ ॥
स्फुरत्कौमुदीकांतसक्रप , गजेन्शेण तुल्यं च कम्नं प्रयाणम् ॥ सुपक्काग्रतायं विनात्योष्ठयुग्मं, ससन्मलि ॥५॥
अर्थः-पूर्ण चंमाना प्रकाशनी परे कांतियुक्त जेमनुं मुखकमल ने, गजराजनी परे सुंदर जेमनुं ग मन , पाकेला थाम्रफल सरखा अारक्त वर्णवाला जेमना बन्ने नष्ट शोने , एवा रूडा श्रीमल्लिनाथ स्वामीमने पवित्र करो ॥५॥ शुनादभ्रलदार्जुनश्वेतदन्त, तति ति यस्य प्र नोर्नित्यमेव विशालारुणश्रीयुतंदृष्टियुग्मंस०६ __ अर्थः-जेमनी सुंदर, सर्व सामुहिक लक्षणोयें क री युक्त, अने अर्जुननामना तृणनी परें सफेत रंग वाली दंतपंक्ति ने, तथा कतिगामी अने किंचित
रक्तवर्णनी शोजायें युक्त जेमनां बे नेत्रो में, एवा रूडा श्रीमन्निनाथ स्वामी मने पवित्र करो॥६॥इति
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १६ ) ॥ श्री गौतमाय नमः ॥ ॥ मुनि दंस विजयविरचित चोवीशी प्रारंभ ||
तत्र प्रथम
॥ श्रीदिनाथ स्वामि स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ कुमकुमने पगले पधारो राज, कुमकुमने प गले ॥ ए देशी ॥ तम तुं तो यदि जिणंद नजले, तम तुं तो आदि जिणंद न ले || एक ॥ जुगलाधर्म निवारण स्वामी, शी ल कला सज ले ॥ तम ॥ १ ॥ प्रथमरा य आदिनाथ कहावे, प्रथम मुनी सघले ॥ आतम ॥ २ ॥ प्रथम तीरथना नाथ नकी बे, ऊट दरिसन कर ले ॥ तम ॥ ३ ॥ संयम लइ निरादार जगत प्रभु, वरस फरया पगले ॥ तम ॥ ४ ॥ श्रेयांस घर प्रभु दानथकी युं, धव्य घणुं ढगले ॥ तम ॥ ५ ॥ के वलज्ञान दिवाकर थई प्रभु, मोद गया मग लें ॥ तम ॥ ६ ॥ ए प्रभुनुं हंस ध्यान ध रीने, शिवसुखडां मंगले ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१७) ॥ अथ दितीय श्रीअजितनाथ स्तवन ॥
॥अब मोदे मागरीयां ॥ ए देशी गेज गतारणहार, अजितजिन, गे जगतारणहार॥ नवदधि पार उतार ॥ अजित ॥ त्रिनुवनना आधार, तुमें प्रनु मंगलना करनार ॥ कर्मरो ग काटण कारण तुमें, वैद्यतणा अवतार ॥गे जग ॥१॥ज्ञानवंत जाणो सदु जगने, तो पण मुक संसार ॥ वीतक जे वीत्युं साहेब, मात पिता परें धार ॥गे जग ॥२॥ बालक नी लीलायुत बालक, ना आगल करे लाड॥ तिम ढुं कहूं सादेब तुझ आगल, मुफ विनती अवधार॥गे जग ॥३॥ दान न दीधुं मुनि जनने बढ. शील न पाल्यं लगार ॥ तपथी तो बढु त्रास धरूं दिल, श्या थारो मुफ दाल ॥गे जग ॥४॥ क्रोध रूप दावानल बली यो, लोन अदी विकराल ॥ वलग्यो ने मुऊ ने शुं करवू, कहो प्रनु दीनदयाल ॥गे जग
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१७) ॥५॥ मान महाअजगरना मुखमां, पडियो बुनीरधार ॥ मायाजालयकी बंधाणो, कर्मत णे अनुसार ॥गे जग ॥६॥आ नव परन व हितकारी कांइ, कीयां न काम लगार ॥ति ण कारण सुख लेश न पाम्यो, गयो जन्म न ज दार ॥ो जग ॥७॥ जाण आगल प्र नु शुंबदु कहेवू, जलदी करो नहार ॥ अवगु एसघला नवेखी ने, यो शिवलमीदाता॥॥
॥अथ तृतीय श्रीसंनवजिनस्तवनं ॥
॥ हारेकिने देख्या हमेरा स्वाम॥ए देश। ॥संनवजिन गे जगस्वामी, स्वामीजी जिनप द पामी रे॥संनवाए चाल॥ तुम समदेव नदी कोई जगमां, अन्य देव ने कामी रे॥ संनव० ॥१॥ राग द्वेष नही तुऊमां दीसे, मुर्ति मां नदी खामी रे॥ संनव०॥२॥ अपर देव पूजाय धतूरे, तुमें जासुदे सुखधामी रे ॥ सं नव० ॥३॥ संनव नाम सुखसंनव दाता, ज
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
(१५) पो तुमें नवि शिर नामी रे॥संनव०॥ ॥से वकनो नछार करो प्रनु, राजहंस गतिगा मि रे॥ संनव० ॥५॥ इति ॥ ॥अथ चतुर्थ श्रीअनिनंदन जनस्तवनं ॥
॥मनदिमें वैरागी भरत जी ॥म ॥ए दे शी। अभिनंदनजिन वाणीरे,प्राणीसांनलो गुणनी खाणी ॥ जयवंती वरते ने जगमां, मि टयातिमिर मीटाणी॥ कठिण कर्म काटण का रण ए, सुंदर जेसी कृपाणी रे॥प्राणी ॥१॥ ए विण जन संसार नमे ,जेम घांचीनी घाणी ॥संशय सकल निवारण ए वली, नविजन साची जाणी रे॥ प्राणी ॥ अनि ॥२॥ दे व कुदेव न ते विण लहीयें, एम नाखे मुनि नाणी॥ सुगुरु कुगुरुना नेद विना नदी, शिव सुंदरी पटराणी रे॥प्राणी ॥ अनि ॥३॥ धर्म अधर्म ने अमृत विष सम, एक करो केम ताणी॥ तेहy जाणपणुं करीने तुमें, लहो शि
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २० ) वलक्ष्मी शाणी रे ॥ प्राणी० ॥ भि० ॥ ४ ॥ ॥ अथ पञ्चम श्रीसुमतिजिनस्तवनं ॥ ॥ इमर बायबली रे ॥ ए देशी ॥ सुम ति जिणंदशं वीनती रे, जव पटवी दूर टाल ॥ दुं अनादी निगोदमा रे, जमीयो नादी काल ॥ सुमति जिन मुळ विनती अवधार ॥ १ ॥ ए प्रकरणी || सिध एकना साह्ययी रे, निक त्यो त्यांथी बाहार ॥ बादर स्थावरमां पड्यो रे, केम न प्राव्यो पार ॥ सुम० ॥ २ ॥ वि गजी मांदे वस्यो रे, पण थिरता नदी क्यां य ॥ पंचेंदीप पामीयो रे, पुण्योदय महिमा य ॥ सुम० ॥ ३ ॥ त्यां पण नरकमां ऊपन्यो रे, कर्म त अनुसार ॥ सागर तेत्रीश तिहां रह्यो रे, कष्ट तणो नदी पार ॥ सुम० ॥ ४ ॥ तीर्थ चगतिमांदें गयो रे, चढ्यो कसाईने द्वार ॥ बे दन भेदन त्यां सह्यां रे, केणें न लिधी मोरी सार ॥ सुम० ॥५॥ देव तो जवें दुःखघणुं रे,
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२१) मरणनो नय मनमांद्य ॥ मनुष्यगतीमां आवी यो रे, शुनोदयन साह्य ॥सुम० ॥६॥देश अनारजमां थयो रे, नीचकुलें अवतार ॥ त्यां पण तुम दरिसन विना रे, गयो जन्मारो हार ॥ सुम० ॥ ७॥णविध नाटक बढु परे रे, ना च्यो दीनदयाल ॥ हवे तुम चरणमां आवीयो रे, नव अटवी दूर वार ॥ सुम०॥॥विन ती सुणी प्रनु माहरी रे, सेवकनी करो सार॥ महेर करी मुऊ कीजीये रे, शिवलमी शिरदा र॥सुम ॥॥ मुऊ मन सरोवरमा वसो रे, हंस तणी परें आज ॥ तेदथी मुझ दूरे टले रे, उष्ट कर्मनां काज ॥ सुम॥१०॥इति॥
॥अथ षष्ठ पद्मप्रनजिनस्तवनं ॥ ॥ जगजीवन जगवालहो ।। ए देशी॥ प अप्रन जिन वालदा, देवपूजित पादपीठ लाल रे॥ शक्ति रहित नक्ति कलं, त्रपा थईने अ दीठ लाल रे॥ पद्म ॥१॥॥ गुण समुह गु
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
( १२ )
ण गायवा, शक्तिमान कुण थाय लाल रे ॥ जि म कल्पांत समुझनें, नुजाबलें न तराय लाल रे ॥ पद्म० ॥ २ ॥ तो पण तुम नक्ति थकी, स्त वना करूं महाराय लाल रे ॥ मृग मृगेंद्र समी प ज्युं, धाय बाल मन लाय लाल रे ॥ पद्म० ॥ ३ ॥ नाथ स्तुति करवाथकी, पाप सवी द य जाय लाल रे ॥ अंधकार जिम सूर्यना, कीर पोथी प्रपलाय लाल रे ॥ पद्म० ॥ ४ ॥ एम जाणी स्तवना करो, नवि तुमें चतुर सुजाण ला ल रे ॥ पद्मनपद पंकजें, हंस परें करो गण लाल रे ॥ पद्म० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ सप्तम श्रीसुपार्श्वनायजिनस्तवनं ॥ ॥ शांति वदन कज देख नयन मधुकर म न लीनो रे ॥ ए देश ॥ सेवो सुपार्श्व जिन देव, आज तुम नाव घणेथी रे ॥ ना० ॥ इदवाकु कुलनये अवतार, मघवादिक मन दर्ष पार || हेमादिपर स्नात्र सार करता भक्तिथी रे ॥
"
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२३) सेवो सु० ॥१॥ चार अतिशय जनमतीवार, कर्मनाशयी नये अग्यार॥गणीस किये सुर ने उदार, चोत्रीश संख्याथी रे ॥ सेवो सुन ॥३॥ समवसरण बेसी जनराज, पांत्रिश गु गयुत वाणी ससाज ॥ नव्य जिव श्रवणनके काज, करता करुणायी रे॥ सेवो॥३॥ धर्म दान देई महाराज, अनेक प्राणीके तारे जाज ॥ मेरी क्युं नही राखी लाज, तकसीर करीयी रे॥ सेवो॥४॥ अथवा तुम तरणी सम न्या य, जगतजीवका तिमिर पलाय ॥ घूक प्राणी कुंसएव थाय ॥ तस उरित नड्याथी रे॥से वो॥५॥तो पण तुम गुणसरनी पाल, हंस रमावो दीनदयाल ॥ निजवाणी मोतियनकी माल, आपी करो राजी रे॥ सेवो सुपार्शजिन देव, आज तुम नाव घणेथी रे ॥ ६॥इति ॥
॥ अथाष्टम श्रीचंप्रनजिनस्तवनं॥ ॥ मल्लिजिन नाथ जी व्रत लीजें रे॥
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २४ )
॥ ए देश ॥ चंदननाथ जी सुख दीजें रे ॥ सुख दीजें माहारा प्रभु सुख दीजें ॥ चंश्प्रन०॥ माता लक्ष्मणायें प्रभु जाया रे, ति हां इंद्राणि मलि प्रायां रे, जई मेरुशि खर नवराया || चंद्र० ॥ १ ॥ मदसेनराजा कु लचंद रे, नविमन पंकज विकसंत रे, मुनि मधुकर माने वे धन्य ॥ चंद्रप्रन० ॥ २ ॥ नि शाकर नामें जीज्ञान रे, जगजीवने शीतलका र रे, माने सुधा त कयुं पान ॥ चंद्रप्र० ॥ ॥ ३ ॥ प्रभु दीक्षा अवसर जाणी रे, कृषि स दस सहित गुणखाणी रे, वस्या संयम शुभ प टराणी ॥ चंद्रप्रन० ॥ ४ ॥ उपासकविजय अ निधानें रे, देवी भृकुटी बे नामें रे, मानुं लक्ष्मी तामें ॥ चं० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ नवम श्रीसुविधिजिनस्तवनं ॥ ॥ बोड चला बनजारा ॥ मुनें॥ ए देशी ॥ सुविधिजिन कुमति निवारी, मुऊ सार करो दि
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२५)
लधारी॥ ए आंकणी॥ सुग्रीव राजा कुल आय, जब रामा मात मुलाये रे, तव प्रनुन की किलकारी॥मुक० ॥१॥ जिन यौवन व यकुं पावे, तव लोकांतिक सुर आवे रे, त्यो दी दा जगहितकारी। मुझ० ॥२॥संयमरमणी जब पाई, तव मन पर्यव दुवो धाईरे, पी के वल ज्ञान स्वीकारी॥ मुझ० ॥३॥ मिल इंज्ञा दिक देव आश्, शुन समवसरण बनाइ रे, सु णि वाणी मोदनगारी॥ मुझ०॥४॥ सब क मौका बंध गेडाई, दोय धर्म शुक्त ध्यान ध्या यी रे, शिवलदमी लदी प्रनु पारी मु॥॥ ॥अथ दशम श्रीशीतलनायजिनस्तवनं॥
॥हूँ तो मुली गयो अरिहंतने जो ॥ए देशी ॥ मुने शीतल जिनशुं प्रीतडी जो, प्रनु मूरति शीतल दीग्डी जो, तेथी आंखडलीमा हरी गरी जो॥ मुने॥१॥प्रनु कल्याणनां मंदिर जो जो, तुमें मेरु गिरी परें धीर गे जो
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२६) ॥मुने ॥ २ ॥ तुमें पाप तणा नेदनार गे जो, तुमें कुमतीना बेदनार गे जो मु॥३॥ तुमें अनयदान देनार गे जो, नवि जीवने पास लेनार गे जो ॥मुने॥४॥ दूं तो संसार मां पडी रह्यो जो, त्यांतो पुःखथकीजलि रह्यो जो॥मुने॥॥प्रनु सेवक सुखीयो कीजीयें जो, शिवलमीथीमुखीयो कीजीयें जो॥मुने॥६॥ ॥अथ एकादश श्रीश्रेयांसजिनस्तवनं॥
॥चिंतामणिपास प्रन अर्ज करूं में तुमकुं ॥ए देशी॥प्रनु श्रेयांस सुणो आप मेरी बा त कही, तम विना कोण धरे कान टक सपो तो सही ॥प्रनु श्रे॥१॥ में हुवा सनाथ अब प्रनु तुमदाथ ग्रही, तुम विना कोण करे सुख मुने पास लही॥प्रनु श्रे॥२॥ अंग मेरा संग करे चंग गुण केरा नही, एक मुने रं ग तेरे नामका जेसा ने दही॥प्रनु श्रे॥३॥ करो मुझे हितधार संसार कारागार बदी, हंस
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
(२७) लदे वास तुम चरणकज पास रही॥प्र॥४॥
॥ अथ दश वासुपूज्यजिनस्तवनं॥
॥लावणी॥श्रीअजितनाथ माहाराज ग रिबनीवाज ॥ए देशी॥ श्रीवासुपूज्य मादा राज, सकल सुख काज, सुधारो आज, सुधा रो आज ॥ जयवंता गे जगमांदि, तुमें माहा राज ॥ ए आंकणी॥ देवोमां जेहवो इंज, ता रामां चंड न्यायीमां राम,न्यायिमां राम ॥तेम सुरूपवंतमां रूडो दीसे काम ॥ रूपवंतीमांदे नार, खरेखर सार,विराजे रंना,विराजे रंना॥ तिम वादित्रोमां वागे रूडी नंना ॥ साहासि मां रावण आप, खपावी पाप, कयुं निज का ज, कस्युं निज काज ॥ ज०॥१॥ऐरावत ह स्तिमांदि, बडो ने तांदि, बीजो कोई नाही, बी जो कोई नाही॥तिम अनय विराजे बुध्विंत नी मांदि॥ तीर्थोमां मोटुं तेद, शत्रुजय जेद, नथी कोई बीजुं, नथी कोई बीजुं॥ जिम पुण्य
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २८ ) पापथी वलि नदी कोई त्रीजुं ॥ नवकार समो नदि मंत्र, नदि कोई तंत्र, नहि कोई साज, न दि कोई साज ॥ ज० ॥ २ ॥ सहकार तरुमां सार, बराबर यार, कटुं बुं साचं, कटुं बुं साचुं ॥ तिम वासुपूज्य जिन देव जोई हुं राचुं ॥ नहि देव जगतमां थाय, विद्रुम सम काय, बीजो को ई तेवो, बीजो कोई तेवो ॥ श्रीवासुपूज्य मादा राज जिनेश्वर जेवो ॥ तसगुण गणसरनी पा ल, रमे बे मराल, सुखके काज, सुखके काज ॥ जय० ॥ ३ ॥ इति श्री वासुपूज्य जिन० ॥ ॥ अथ त्रयोदश श्री विमलनाथ जिनस्तवनं ॥
.
॥ विमलाचल विमला प्राणी ॥ ए देश ॥ ॥ प्र विमलनी विमला वाणी, धरो हृदयकमलें तुमें प्राणी, एतो गुणगण सकलनी खाणी, ए तो मिथ्या तिमिर मीटाणी ॥ विमल जिननाथने न वि सेवो, नहिं देव जगतमां एहवो ॥ विमलजि न० ॥ १ ॥ त्रण लोक तपा तुमें स्वामी, तीर्थ
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ए) कर पदवी पामी, झानरूप तुमें गुणधामी, यो गीं पदें विशरामी॥ विमल ॥२॥ संसार मां लदी अवतार, थया एकांतें हितकार, ज गनाथ तुमें धरी प्पार, कस्यो मोदमारगनो न हार ॥ विमल ॥३॥ संसारसमुत्थी आज, करवा नहारने काज, देखाडण मुक्तिनुं राज, पाम्या संयम श्रीमादाराज ॥विमल ॥४॥ ॥ अथ चतुर्दश श्रीअनंतनाथ जिनस्तवनं ॥
॥अब तो पार नये दम साधु ॥ए देशी॥ ॥राग काफी॥ अनंत नाथ महाराज तुमें प्र नु, मुझ मन वसज्यो मदेर करी रे॥ए आंक गी॥ मन मादरूं मेलु ले साहेब, रदेवे नही शु न ठगम ठरी रे॥तिण कारण सादेब तुम आ गल,अरज करुं बुं पाय पडी रे॥अनंत॥२॥ जेम मलिन जल कतक चूर्णना, जोगथकी न मलता ग्रदे रे॥तिम तुम जोगथकी मन मा दारूं, शांत थई स्वबताकुं लदे रे ॥ अनंत
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३० ) ॥ २ ॥ तुम मुखचंद्र अमृतयोगें करी, मन मा दारुं न आणंद जयुं रे ॥ ति कारण दिलमां इम मानुं, पचरथी पण कठिण ठस्युं रे ॥ नं त० ॥ ३ ॥ समजाव्युं समजे नदी साहेब, श्वान पूब ज्युं वक्र वले रे ॥ चंचलता बहु एहनी दी से, बाल परें नही गम ठरे रे ॥ अनंत० ॥४॥ तुमें प्रभु मनडुं थिर करी लीधुं, कामण तो तु मैं शुं करि दीधुं ॥ तिम माहरूं करशो जो सा देब, तो मुऊ कारज सघलुं कीधुं ॥ अनंत० ॥ ॥ ५ ॥ तुम चरणांबुज राजदंस परें, जो मन मा दारुं वास करे रे । तो मुऊ संपद सघली साढ़े ब, तुम पसायथी आवी मले रे ॥ ० ॥ ६ ॥ ॥ अथ पंचदश श्रीधर्मनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ राग तुमरी ॥ महावीर चरण में जाय, मे रो मन लागि रह्यो । माहा॥ ए देश ॥ श्रीध मनाथ के पाय, मेरो मन लागि रह्यो ॥ श्री० ॥ ए की | कर जोडी कहुं हुं सुप साहेब, मि
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३१) थ्या तिमिर मीटाय ॥ मे ॥ श्री० ॥१॥दोष सदित मुखडं में कीचूं, परनिंदा बढु गाय॥ मे० ॥ श्री० ॥२॥ परनारी निरखेसें नयणां, निर्म ल नांदी गिणाय ॥ मे ॥ श्री० ॥३॥ परपी डा चिंतिने चित्तमां, चित्त कयुं कुःखदाय ॥ मे ॥ श्री० ॥ ४॥ धन्य दृष्टि जेणें तुमने जो या, सुंदर तेह मनाय ॥ मे ॥ श्री० ॥५॥ध न रसना जिणेस्तुतिरस लीनो, तेह प्रमाण क राय॥ मे॥ श्री०॥६॥ धन्य हृदयकज तेढ नुं कहीये,जिनहंस लीयो रे बिगय॥ मेणा॥ ॥अथ षोडश श्रीशांतिनाथ जिनस्तवनं ॥
॥शांतिजिन मूरति तोरी लागे मुने प्पारी रे॥ढुं नीर दिलमांधारी॥शांति ॥ ए दें शी॥ कंचन सम काया रे, शांतिनाथ कदा या रे, प्रणमुं हूँ तोरे पाया, तुम अजब ध्या न लगाया॥शांति ॥१॥ शांति वदन तुम सोदे रे, इंचं मन मोहे रे, तुम नयन युगल
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३२)
कज तोले, मृगनेत्र नहिं जन बोले ॥ शांति० ॥ २ ॥ पदवी बे पामी रे, चक्रीजिन स्वामी रे, वंड बुं हुं शिर नामी, नही तुम दरिसनमां खा मी ॥ शांति ॥ ३ ॥ तु समो कोई दानी रे, जगमां नही प्राणी रे, तुम मुक्ताफलसम वाणी, चाखी हंसें गुण खाणी ॥ शांति० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ सप्तदश श्री कुंथुनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ राग दादरी ॥ चाल इंग्रेजी वाजानी ॥ कुंथुजिनेंद्र चंद्र प्रभु ऐसी क्या करी, दमकुं लगाई नेद प्रीत नरशुं करी ॥ कुंथु ॥ १ ॥ अपना सुणाइ नाम मेरा चित लीया दरी, अ
क्या गुनाद मेरा प्रीतिसें गये मरी ॥ कुंथु ॥ ॥ २ ॥ तुम दरसकुं तरसे बे मेरी यांखडी ख डी, प्रभु दीजीयें दरस माफ मागुं पग पडी || कुंथु० ॥ ३ ॥ तुम ध्यान बिना जाय मेरी पाप में घडी, तुम मूरति बिन ध्यान मेरा जाय बेग डी ॥ कुं० ॥ ४ ॥ जिस्सें तुमेरा नेद, जस्सें मेरा
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
बी वली, प्रनु कीजीयें दयाल मले लक्ष्मी नली॥ कुं॥५॥इति कुंयुजिनस्त॥ ॥ अथाष्टादश श्रीअरनायजिनस्तवनं ॥
॥ श्रीश्रीशांतिनाथ, जोडुं ढुं बे दाय, नमी करुं प्रणाम, नित उठीने प्रनात ॥ ए देशी॥ अरनाथ जिनराज, पकड कुमति ! दाय, तुं हो य जासनाथ, नदि तो रेगा दिन रात ॥ ए चाल ॥साची मूर्ति सादेबकी, ऐसीनहि को ई दोय ॥ जैनधर्मना पंमितोयें, परखी लीधी सोय॥ अरना ॥१॥ शैपदीये प्रतिमा पू जीने, ज्ञातासूत्रे जोय ॥ यदादिकनी प्रतिमा आगल, नमुबुणं नदि दोय ॥अरनाथ ॥२॥ जंघाचारण विद्याचारण, प्रतिमावंदन काज ॥ नंदीश्वरही जे पदोता, नगवती देखो आज ॥अरना ॥ ३ ॥ जो ते मुनियो विद्याथी वली, सेल करनकुं जाय ॥ तो त्यांना परवतने वंदी, केम नदी मकलाय ॥ अरना ॥४॥ सूर्याने
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३४) प्रतिमा पूजी ने, रायपसेणी पाठ ॥ते पण कु मतीकर्णविवरमां,तप्त त्र ज्यु गठ॥अरना॥ ॥५॥ चैत्यशब्दनो ज्ञान अर्थ तुं, करे धरीम न हाम ॥ पण पंमित हंसोनी मांदी, काक परें तुऊ धाम ॥ अरना०॥६॥ते कारण कह तुझ कुमती, सनिल मोरी वात ॥ अरजिनवर चरणांबुज सेवो, हंस परे दिनरात॥०॥७॥ ॥अथएकोनविंशति श्रीमल्लिनाथ जिनस्तवन।
॥राग परज॥ निश दिन जो तारी वाट डी, घेर आवोने ढोला॥ए देशी॥ मल्ली जिने श्वर सादेबा, वसीया मन मोरा ॥ हृदयकमल थापी करी, धरूं ध्यान ढुं तोरा ॥ मल्लीजि ॥ ॥१॥मादादेव तुझ मान के,अन्य देवकुं गेडा ॥ जिस तुल्य जगमां को नदी, उनका कुण जो डा॥ मनीजि ॥२॥ अनुचित कथन करण सें, ब्रह्मा शिर तोडा ॥ जागृतराय मदनसें,र वि बन गया घोडा।मल्लीजि॥३॥वचन भ्रष्टता
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
__ (३५) होणसे, दरिरोग दे दोला॥ लुप्तशिश्न कुकर्म सें, बन गया दर नोला॥ मल्ली०॥४॥तिण कारण नही देव ए, इम बदु जन बोला ॥ मो हराय प्रतिमल्ल दे, मल्लिनाथ एकीला ॥ मल्ली जी० ॥५॥प्रनु दर्शनथी पामवा, अनुनव रस चोला ॥ तुम पद पद्मसरोजमां, करे दं स कल्लोला ॥ मनीजि०॥६॥ इति॥
॥अथ विंशति मुनिसुव्रतजिनस्तवनं॥
॥राग पीलु ॥ तीर्थ जारो अब,करीयें न विक टंद, दाख्यो रे जिनंदपद, आनंद नरें रें ॥ए देशी॥ मुनिसुव्रतजिन,नमीन चेतन राय, जाचो रे सुगति गाय, गुण गण रुंद रे ॥ मु नि सु॥ए आंकणी ॥ स्वामी जिनाधीश जो य, नवनय कुःख खोय, जयजयकार होय, क टे कर्म कंद रे॥ मु०॥१॥सेवना प्रनुनी क री, पापपंक परिदरी, शुनपंथ पग धरी, हरो सब फंद रे॥मु०॥२॥ मनमां मगन थाई,
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३६) सेवो जिन तुमें नाइ, करो न उगाई कांई, वरो ने आनंद रे॥ मु०॥ ३ ॥ देवनी करीने सेव, दूर करी खोटी टेव, ध्यान धरो नित्यमेव, प मानो नंद रे ॥ मु॥४॥ प्रावृट कालने ल दी, हंस जाय सर बही, तिमतजीजावो मही, जिहां प्रनु चंद रे॥मु०॥५॥इति ॥ ॥अथ एकविंशति श्रीनमिजिनस्तवनं ॥
॥राग माढ ॥ थारी गई रे अनादिनी निंद जरा, ट्रंक जोवो तो सही ॥ ए देशी॥प्रनु व प्रानंदन चंद नमी, जिन जोवो तो सदी ॥ जो वो तो सही,महारा साहिब जोवो तो सही॥प्र नु० ॥ ए आंकणी॥ ज्ञानवंत नगवंत, ध्यान मां लेवो तो सही। मेरा सादिब लेवो तो सही ॥तुम विण कुण जे आधार, मुझे टुंक कदेवो तो सही॥ मे ॥प्र०॥१॥सकलकलाकला प तुमें, प्रनु देवो तो सही॥मे ॥ प्रनु ज्ञात तत्त्व तीन तत्त्व रूप, यो मेवो तो सही।मे॥
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३७ )
प्र० ॥ २ ॥ जाग्यहीन नही देवनें, पामे तेवो तो सही ॥ मे० ॥ श्रीनमीनाथ महाराज, जिने श्वर जेवो तो सही ॥ मे० ॥ ० ॥ ३ ॥ तिण का रण मुऊ भाग्य हीनता, धोवो तो सही ॥ मे० ॥ करी निरमल निरुपम अद्भुत, सुंदर बो वो तो सही ॥ मे० ॥ प्र० ॥४॥ नीलकमलउरु बी च थापी, पत खोवो तो सही ॥ मे ॥ ए दंस तांबे ठाम तुमें, क्युं ढोवो तो सही ॥२॥ दं सबेवावी त्यांय में, यश बोलो तो सही ॥ मेणा प्रभु हितकारी महाराज, जगतना होवो तो सही ॥ मे० ॥ प्र० ॥ ६ ॥ इति ॥
॥
विंशति श्रीनेमनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ राग भैरवी ॥ लागी लगन कहो केसें ब टे, प्राण जीवन प्रभु प्पारेसें ॥ ला॥ ए देश ॥ नेमी जिणंद जुहार रे प्राणी, नेमीजिणंद जुहा ररे ॥ एकणी ॥ शिवादेवी नर जन्म ली यो दे, तीन ज्ञान दिल धार रे ॥ ती० ॥ ने० ॥
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३७) ॥१॥ गदाकौमोदिकी वाल के कीनी, जेसी वृक्षाकी माल रे॥जे ॥ ने ॥२॥ अद्भुत् बल देखी चित्त चमक्यो, हरि नयो दरिवत काल रे॥ दण॥ने ॥३॥ राजुल रूडी गे ड चले प्रनु, जाई चढे गिरनार रे ॥ जाण ॥ ने॥४॥अद्भुत ध्यान धरि तिहां कीनी,शिव लक्ष्मी स्वीकार रे॥ शि॥ ने॥५॥ इति॥ ॥ अथ त्रयोविंशति श्रीपार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥राग खमाच ॥ शांतिवदनकज देखिने, मधुकर मन लीनो रे॥ए देशी ॥ पार्श्वनाथ महाराज आज उर्गति जुःख वारो रे॥ नलांड गति उःख वारो रे॥ पार्श्व ॥ ए आंकणी॥तें प्रनु राग जरग मादाक्रूर, वक्र दारुण कयो च कचूर, विनतानंदननी परें, नलां निर्नय सुख लीनो रे॥नलांग ॥ पार्श्व ॥१॥ अत्यंत वेषी रोपी ष, निषणने प्रनु तुमें विशेष,महा नट नी परें जिनेश,नलां जीत्यो जगस्वामी रे॥न
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
(३५) लांग ॥ पार्श्व॥॥ ग्ल गवशी मादा विकरा ल, मोद पिशाच जगतनो काल, तेंप्रनु निग्र द कीधो लाल, नलां सुधि मंत्रवादी परें रे॥ नलां०॥ पाच ॥ ३ ॥ अश्वसेन कुलकमल उल्लास, करवामां प्रनु रवि प्रकाश, वामा न दरदरीमां खास, नलां केशरीकिशोर सम रे॥ नलांग ॥ पार्श्व ॥४॥ श्वाकु कुलनूपण समान, गतदूषण दूरीकृतमान,जनय पद जस हंस समान, नवकूपनीवारो रे॥नापाणाया ॥अथ चतुर्विशति श्रीमहावीरजिनस्तवनं ॥
॥सिहाचलगिरि नेट्या रे, धन्य नाग्य द मारां॥ ए देशी॥ महावीरजिन जग प्यारा रे, मनमोहनगारा ॥ त्रिशलानंदन प्यारा रे, म नमोहनगारा ॥ ए आंकणी॥प्राणत देवलो कथी चवीया, जगजनना आधारा ॥ त्रिशला नदरसरोज हंस ज्युं, स्वामी लह्यो अवतारा रे॥ मन ॥१॥ माता चौद सुपन तव देखे,
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४०) अनुक्रमें मंगलकारा ॥ गजवर तपन सिंह ने देवी, दाम शशी रवि सारा रे ॥ मन ॥२॥ ध्वज कुंन पद्मसरोवर सागर, देवविमान उदा रा॥ रत्नसमूह वन्दिनी ज्वाला,राणी कहे सुण वादाला रे॥म ॥३॥ शुं फल दोशे कहो मुझ स्वामी, तव कहे राय विचारा॥राज्यपती राजा तव नंदन, होशे जिन मनोहारा रे॥म न॥४॥ चैतर शुदि तेरशने दिवसें, जन्म ढुवो सुखकारा ॥ नारकने पण आणंद ते दिन, हंसादिक जयकारा रे॥ मन ॥५॥ इति॥
॥सिहाचलस्तवनं लिख्यते॥ ॥विमलाचल नगनाथने, चित्त धरीयें। हारे चित्त धरिये रे, चित्त चित्त धरियें॥हारे चि त धरिये तो शिववध वरिये, हारे तरी नव पाथ ॥ विमला ॥ए आंकणी॥ चौद महान दी शोनती तिण गम, हारे तेमां शेजूंजी अ ति अनिराम,हारे दारी गंगा फिरे अन्य गम,
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४१) दां रे एतो पुण्यनी रेख ॥ विमला॥१॥ त टिनीपतिना तट प्रतें करेलीला,हारे तालध्वज उत्संगमां क्रीडा, दारे करती काटे कर्म कीला, हारे नदी सर्वमा सार ॥ विमला० ॥२॥कोड सहस नवनां कस्यां नवि प्राणी, हारे निजपा तकनी करे दाणी, दारे एहवी जिन गणधरनी वाणी, हारे धरी पगलुं एक ॥ विमला ॥३॥ रहित होवे कर्मरजथकी पंथरजथी, दारे नव भ्रमण मिटे त्यां भ्रमथी,हां रे थिर संपद दोय अव्य व्यययी, हारे पूजे दोय पूज्य ॥विमला ॥४॥कंमुराय मादा पापीयो इहां आवी, दारे शीलसन्ना काय दीपावी,दारे व्रत शस्त्रयीमो द दरावी, दारे वरी शिववधू सार ॥ विमला ॥५॥ उष्ट अदनी राजादनी तलें नालो, हां रे आदिनाथ चरणने जुहारो; हारे मोहराय सुनटने निवारो, दारे टालो नव पीड ॥ विम ला॥६॥गिरिनूपति शिर सेहरो जिनना
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४२) से, हारे आदिनाथ जगतने प्रकासे, दारे नय जन्म मरणने निकासे, दारे एतो जगतना तात ॥विमला ॥७॥ अणदिलपुर पाटणयकीसं घलावे, हारे ऊवेरचंद गुमानचंद नावें, दारे संवतवेद अब्धि सुहावे, दारे नंद इं७ मिलाय ॥विमला ॥७॥ कृष्णपद पोषमासनी तिथि सारी, हारे दशमी लागे मुने प्यारी, हारे मा नुं लक्ष्मी विजय करनारी, दारे नेट्या आदि जिणंद ॥ विमला ॥ ए॥इति ॥
॥ अश्य वितीय श्रीसिहाचलस्तवनं ॥ ॥आव्यो गिरिशरणे तारे नवनटकी रे॥ अब लीजो मुमकुं तारी ॥ आव्यो० ॥ पुं मरीक गुरु तारी रे, पुंमरीक पद धारी रे ॥ मु नि पंचकोडि सहचारी, चैत्री राका अजुवाली ॥ आव्यो॥१॥ धर्मराय मुख पांचे रे, पांम व नली नाते रे ॥मुनि वीश कोडि संघातें, प रणावी शिव निज दाथे॥आव्यो॥२॥ पुंम
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४३) रीक गिरिराया रे,आदिनाथ कहाया लाग्यो अब तोरे पाया, दिजो शिवलदमी माया ॥३॥
॥ अथ श्रीधर्मजिन स्तवनं॥ ॥वारी वारी जाउं ॥ वा ॥ श्रीधर्मनाथनो मंप देखी खुशी थालं ॥ए आंकण॥ देश हा लारमा दीपतुं ने, सहेर वडुं प्रख्यात ॥ जाम नगर सोदामj, त्यां चैत्य बहु विख्यात ॥वा री० ॥१॥ ते देवलनी गया सही, ऊगमग गमग थाय॥मम्पमाह चित्रारुडा,बदजनयं। वखणाय ॥वारी ॥२॥ ते चित्रोमां सिहाच लना,पटनी शोना सार ॥नावनलेंथी नेटीयें तो, थाय सफल अवतार ॥ वारी० ॥३॥ त्यादिक बहु मंम्परचना, जोवायीज जणाय॥ त्यां बेग श्रीधर्मजिनेश्वर, तेमां चित्त तणाय ॥ वारी॥४॥ जे जन ए जिनसेवा करशे, चि त्त धरी रंग चोल ॥प्रनुनो सेवक किन्नर कर शे, तेदना वंचित कोम ॥ वारी॥५॥ धर्म
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
( RR )
जिनेश्वर धर्मके धोरी, धर्मतणा दातार ॥ तुम च रणांबुज सेवा चाहे, प्रतिदिन राज मराल ॥ ६ ॥
॥ अथ द्वितीय श्री धर्मनाथ स्तवनं ॥ ॥ बंद त्रिनंगी ॥ श्रीधर्मधुरंधर, धर्मजिने श्वर, प्रगट प्रभु तुं, परमेश्वर ॥ तुं पूर्ण प्रका शी, विपदविनाशी, अज अविनाशी, विश्वे श्वर || मोहराय विनाशी, घरी सुख राशि, ज्ञान विलासी, जगदीश्वर ॥ जय विनुविख्याता, पद पूजाता, प्रगुणी गणाता, साक्षाता ॥ १ ॥ तुंबे जगस्वामी, अंतरजामी, नदी कांई खामी, गुणधा मी ॥ प्रभु तुम पाय पामी, जेद हरामी, पूजे नदि, दुर्गतिगामी ॥ तुं परम कामी, सुखविश्रामी, मंरुपमां नहि, तुक खामी ॥ जय ॥२॥ प्रभु ज गदाधारा, दुःख हरनारा, सुख करनारा, जन प्यारा ॥ गुण सहुयी सारा, सघला तारा, त्या ग नवारा, गुण मारा ॥ जस तुम मत प्यारा, ला गे सारा, लक्ष्मी विजय तस, करनारा ॥ज ॥३॥
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
htOfo
557
हाहातालाहरूक
.
olis2&ाहन..
KARAN
AVI.
WE
43
(VERSid
-
-
-
-
-
श्री सीमंधरजी महाराज.
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवपद्जीनु ममल.
सुनम इंस एस्स
ॐनमः तबस्स
ना लस्स
नमः
चरितस्स चुनमः)
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४५) ॥ अथ श्रीसिक्ष्चक्रमादाराजस्तवनं ॥ ॥ सेवोजी तुमें नवपद जगदितकारी, सब आल जंजाल निवारी॥ सेवो॥ए आंकणी॥ देवगुरु ने धर्मतत्व दे,श्नमें सवि सुखकारी॥देव तत्त्व अरिहंत सि दे, परमानंद पदधारी ॥ सेवो जी० ॥१॥ आचारिज पाठक ने साधु,गु रुतत्त्वे मनोहारी ॥ दरिसन झान ने चारित्र तप दे, धर्मतत्त्वमकारी ॥ सेवो जो० ॥२॥ राजा श्रीपाल राणी मयणा दोय, कर्मकलंक निवा री॥ विधियोगें आराधन कर के, ढुवे इनपद अधिकारी॥ सेवो जी० ॥३॥ इनका कथन श्रीपालचरित्रं, बोहोत किया दे नारी॥ जस विधिसे आराधन करशे,सो लेदशे नवपारी॥ सेवो जी०॥४॥ सर्व मंगलमांप्रथम एहि दे, सिश्चक्र जयकारी॥ अदनिश इनमें रमण क रे सो, शिवलदमी वरे नारी ॥ सेवो जी०॥५
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ४६ )
॥ अथ चंद्रप्रभजिनस्तवनं ॥ ॥ खियां चंद्रप्रनंजी में आज लगी, या ज लगी प्रभु आज लगी ॥ ० ॥ चंद्रप्र श्रीधर्मजिनेश्वर, चोमुख चित्त चाद लगी ॥ ० ॥ १ ॥ रिसावनमें सोदे जिनवर, आसपास सिधचक्र मिली ॥ ० ॥ २ ॥ ती न बत्र शिर ऊपर सोहे, गलबिच देमकी माल पडी ॥ ० ॥३॥ धातुमयी प्रभु बिंब विराजे, दोष ढार रहित वली ॥ ० ॥ ४ ॥ यानं दगुरुनें लक्ष्मी विजयनो, शिष्य कहे मुऊ श फली ॥ ० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ पार्श्वनाथ अवतार देजी अवतार, नया बणारसमें॥तस दस नव में वर्णन करशुं, कल्प सूत्र अनुसार ॥॥पा॥१॥ प्रथम नवें पोत न पुरनगरें, पुरोहितपुत्र सुरसार || || धार्मि क मरुभूति तिहां प्रगट्युं, नाम नलुं जयकार ॥
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
LIVE
श्रीचंद्रप्रभ स्वामी
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
3
£33
४
8383
२३
+
33
श्री पार्श्वनाथजी महाराज.
Vaati..
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५७) नापा ॥२॥ समेतशिखर शैलें बीजे नव, ईन नयो बलवान ॥ न पा ॥ अरविंद रा जरुपियें प्रतिबोध्यो, जातिस्मरण ढवो झान ॥न पा ॥३॥त्रीजे नव अष्टमे देवलोकें, देव दुवो सुख सार॥न पा०॥ तुरिय नवें विद्याधर नामें, किर्णवेग नूपाल॥नपा॥॥ कुलक्रमागत राज्य त्यागि के, गुणनिधि दुवो अणगार ॥ न पा॥ बारमे देवलोकें पंचमे नव, बहे मादाविदेह धार ॥ न पा ॥५॥ वजनान नामें नरपति तिहां, राजवंशी मुनि थाय ॥ न पा ॥ सातमे नवमध्यमग्रैवेकें, चक्रि अष्टमें नवें थाय॥न पा॥६॥ तृण परें षट्खंमनां सुख गंमी, प्रांतें थयो मुनिराय ॥न पा० ॥ नवमे त्रिदसो प्राणत देवलोकें, दशमे पार्श्वनाथ थाय ॥न पा० ॥ ॥ अ ष्ट कर्मनो नाश करीने,मुक्तिपुरीमांजाय॥न॥
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४७) पा० ॥ आत्मचंदने लक्ष्मी मुनिना, विनयने करो सुपसाय॥न पा० ॥6॥
॥अथ श्रीकेसरीयाजी स्तवनं ॥विमलाचल नितु वंदियें ॥ ए देशी॥ के सरीया नितु वंदीयें, कीजें एदनुं ध्यान ॥ पार उतारे नवतणा, नितु जपतां नाम॥ केसरी०॥ ॥१॥ संघ ते देश विदेशना, आवे ताहरी यात्र॥पूजे चंदनकेसरें,वलीलेपे गात्राकेसरी० ॥२॥ श्यामली मूरति सोननी, लागे मुकम न प्यारी ॥ देखतां उरगति टले, दैये आनं दकारी॥ केसरी॥३॥ इति॥
॥अथ श्रीसीमंधरजिनस्तवनं॥ ॥श्रीरे सिहाचल नेटवा, मुझ मन अधि क उमायो॥ ए देशी॥ श्रीसीमंधर सादेबा, अवधारोने स्वामी॥ अरज करूं तुम आगलें, प्रनु शिवगतिगामी॥ श्री० ॥१॥ दीनपुण्य ना जोगथी, तुम दरिसन खामी॥ते मुझने प्र
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
(४५)
कु
जु दीजीयें, परदितना कामी ॥ श्री० ॥ १ ॥ डु ष्ट धृष्ट पापिष्ट बुं हुं बेक हरामी ॥ तुम वि ए मुक तारशे, प्रभु अंतरजामी ॥ श्री० ॥ ३॥ ढुं मागं बुं एटलुं, साहेब शिर नामी ॥ तुम प दपंकज हंस ज्युं, थानं हुं वीरारामी ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ गहूंली लिख्यते ॥ ॥ चालोने नवि चालोने मुनि, तमराम जी वंदन रे || शांत मुषा शोने मुनिवरनी, क लधौतवर्ण शरीर रे | पंकजदलसम नेत्र बे जे दनां, ईर्यासमितिमां थीर रे ॥ चालो० ॥ १ ॥ दान प्रानूपण करकमलें बे, श्लाघा करवा यो ग्य रे ॥ गुरुनां चरणवंदनरूपी बे, शिरनूपण संयोग रे ॥ चालो० ॥ १ ॥ मुखें सत्यवचन रू पीबे, संघने आनंदकारी रे ॥ श्रुतश्रवण रूपी कानें बे, भूषण सुखकारी रे ॥ चालो० ॥३॥ हृदयें स्वच्छ वृत्ति वे जेहने, मायानो नहीं लेश रे ॥ भुजकें मदा प्राक्रमरूपी, आभूषण सु
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५०) विशेष रे॥ चालो ॥४॥ मंगण ए अपूर्व मु निनु,तुमें पण धरजो सुजाण रे॥ जे नर ए आ नूषण धरशे,तस घर लक्ष्मीप्रधान ॥५॥इति॥
॥अथ गढूंली बीजी॥ ॥धन धन रे आतमराम, ढुंढकमत नष्टा लु ॥ ढुंढक नष्टालु ने नवोदधि तारु, वारु कर्म कुगर रे॥ तस मुनिवर, वरणन करतां, सु
जो सद नर नार ॥ ढुं० ॥ध० ॥१॥ ढुंढ कमत त्यागी करी रे, देश पंजाबनीमांह रे॥ राजनगरमां आवीया रे, धरवा सुगुरु सन्नाद ॥ढुंग॥धण॥२॥ प्रथम शिष्य तसु शोनता रे,ल दमी विजय मुनिसार रे॥वैरागी त्यागी खरा रे, झान तणा दातार ॥ ढुं० ॥ध॥३॥ अवनीत ल पावन गुरु करता, विचरे देश विदेश रे॥ संजम खप करता नमुं रे, एदवा मुनि सुविशे प॥ ढुं० ॥ध॥४॥ मेघध्वनि दीये देशना रे, धरी करुणा मनमांदी रे॥ जाणे सवि जग जीव
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५१) में रे, करूं शासननी मांदि॥ ॥ध॥५॥ शिष्यममलने नणावता रे,काव्य तर्क ने कोश रे॥बंद शब्द सिझतना रे,ग्रंथ नलीमति दे त ॥ढुं॥ध॥६॥नो लोका तुमें सांनलो रे, त्यागी सकल प्रमाद रे ॥ मोदमार्ग सार थपति आव्या, पकडो एदना हाथ ॥ ढुंगाधन ॥७॥ निर्विघ्नं पहोंचाडशे रे, मोहनगरनी मां यी रे॥ एम जाणीने सेवजो रे, लोहकील जि म न्याय ॥ ढुं० ॥ ध० ॥ ७॥ एहवा मुनि गु ण गावतां रे,आवे गुण निज अंग रे॥ए गुरु पद सेवनयकी रे,पामो लमी सुरंग॥णाति॥
॥अथ गढूंली त्रीजी॥ ॥सुण प्राणी रे,मुनि मुखकमलें भ्रमरपरेंतुं रहेने॥ मुनिमुख वाणी, अमृतसरखी जाणी तुं सुणि ले ने ॥ ए टेक॥मुनि संयममा रहे रम ता, जेने काम कदाग्रह नथी गमता, एतो इंजी पांचने रहे दमता ॥ सुण प्रा०॥१॥तजी ना
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
(42)
री नगरी दूर वारी, संयमरमणी नलि डर धा री, शिववढू बरवानी बे त्यारी ॥ सुण प्रा० ॥ ॥ २ ॥ जेणें निंदा विकथा परिदारी, व्रत नार नस्यो शिरपर नारी, जिन प्राणाखन निज क रधारी ॥ सुण प्रा० ॥ ३ ॥ जेणें कुमति हृदययी करि न्यारी, नली परें सुमति बहु शणगारी, ए वा मुनिजननी जानुं हुं वारी ॥ सुप प्रा० ॥४॥ मोदराय प्रबल सेना मारी, जेणें धर्मराय सेना गरी, जयलक्ष्मी वरी सदु जन प्यारी ॥ ॥ सुप्रा रे, मुनिमुखकमलें भ्रमर परें तुं रहेने ॥ ५ ॥ ॥ अथ श्री दीवाली स्तवन ॥
॥ धारणी मनावे रे मेघ कुमारने रे ॥ ए देशी || दीवा लिने दादाडे रे वीरप्रनु पामीया रे, अनुपम पढ़ निरवाण । तेणें दिन देवो रे सहु मिली एकता रे, आव्या पापापुरी ठाण ॥ दी० ॥ १ ॥ तिहां प्रभुवीर रे मोक्ष जावाथ की रे, करयुं पापापुरी नाम ॥
अनुक्रमें आ
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५३) व्या रे नंदीश्वर गिरी रे, करवा कल्याणनां का म॥दी ॥२॥ तेणें दिन काशी रे कोशल देशना रे, त्यांगणराय अढार ॥ पोसह कयो रे तेणें आहार त्यागनो रे, संसारनो अंतकार ॥दी॥३॥ ते राजायें रे मनमां चिंतवी रे, ना वदीपकना अनाव ॥ व्यदीपक रे त्या प्रग टाविया रे, थयो दिवालि प्रनाव ॥ दी॥४॥ तेणें दिन करी रे नवि दीपमालिका रे, विधि जयणायें जिनधार॥तिमिर मिटावी रेनिज आ तमतणुं रे, करे शिवलमी स्वीकार ॥दी॥५॥ ॥अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन लावण॥
॥अपने पदकुं तजकर चेतन, परमें फसनां ना चाहियें ॥ ए चाल ॥ श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ चेतन दिलमें रखना चाहिये ॥ ए अद्भुत ध्यानी सरण इस, जिनजीका लेना चाहिये। श्री०॥१॥कमठ धरणपतिजी पर जिनकी, तुल्यदशा जोना चाहियें। एक उखदायी है छ
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५४) जाकू, सुखदायी कहेना चाहिये॥ श्री० ॥ २॥ यादवजनकी जरा निवारी, सोबी सुण लेनां चा हियें ॥ ए चमत्कारी है खरेखर, खूब समऊ लेना चाहियें। श्री० ॥३॥ चार वार तुम हारें श्राव्यो, अरजि सुण लेना चाहिये । हंसाकू सादेब तुमारा, चरणांबुज देना चाहियें ॥४॥ ॥अथ मंत्राणा मंमन श्रीआदिनाथ लावण॥
॥झपन जिणंद विमलगिरि मंमण, मंमण धर्मधुरा कहियें ॥ए चाल ॥ आदिनाथ सेवा कारण नवि, केसर खुब घसनां चाहिये। मांदे कपूर मिलावी पूज्यकी, पूजामा वसनां चाहिये ॥आदि॥१॥शंकादिक दूषणसेंती जन, ज लदीयी खसनां चाहियें। जिन फूलोसें पूजी हृदयमां, खूब तरे दसनां चाहियें ॥ आदि। ॥२॥ रथयात्रादिक कार्य करणमा, कम्मरकुं कसनां चाहियें॥नवभ्रमण मिटावे फंदमें, औ र नदि फसनां चाहियें ॥आदि० ॥३॥गाम
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५५) मेंत्राणा मांदि नाथका, दरिसनकुं धसनां चा दिये। हंसा सुण मेरा तेरे नहिं, ओर जगे न सनां चादियें॥ आदि०॥४॥इति ॥ ॥ अथ श्रीपाटण मंमण श्रीशांतिनाथस्तवन।
॥अपने पदकुंतज कर चेतन, परमें फसनां ना चाहियें ॥ए चाल॥ शांतिनाथ महाराज कुं प्राणी, हृदय कमल रखना चाहियें॥ एतर ण तारण हे वचनरस, जिनजीका चखना चा दियें॥शांति॥१॥ अन्यदेव कामी क्रोधी कुं, त्यागकें उर नखना चाहिये, करुणा शांत वदन दे जिसको, आप जरुर देखना चाहिये ॥शांति ॥ पांचमा चक्री सोलमा स्वामी, देख हर्ष लेना चाहियें॥ए खटखम बंमी बने महा, योगी निरख लेना चाहिये ।। शांतिः ॥ ॥३॥पाटण सहेर फोफलीया वाडे,नाथ लख लेना चाहिये।ए परमप्रनु दे सीका,नामकुंले रखना चाहिये। शांति ॥४॥ शुन नाव सम
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५६ )
,
तासें जिनका रूप हृदय लिखनां चाहियें ॥ दंसा तेरेकुं एसे जिन, जी का गुण सिखनां चाहियें ॥५॥
॥ अथ गहूंली ॥ वंदि जिनजी प्रभु पास रे, जसु वंदे लील विलास रे, गानं गुरुगुण मनने उल्लास, सूरीश्वर वीनति अवधारोरे ॥ जामनग रनी मांदि पधारो ॥ सू० ॥ १ ॥ गुरु दत्री कुल शुभ पाया रे, बढु गाम नगरने दीपाया रे, ते यी लागी बे तुम ती माया ॥सूणा जाणाश प्राणीगम करवायी विहार रे, थाशे लाभ घ पो उपगार रे, नरनारी यशे व्रतधार ॥ सू॥ जा० ॥ ३ ॥ जामनगरनो संघ तुमारी रे, वाट डी देखे दिल धारी रे, तुम यावे चढशे खुमा री ॥ सू० ॥ जा० ॥ ४ ॥ विनती सुणी संघ नी सारी रे, जामनगरनी मांदे पधारी रे ॥ करो देशना आनंदकारी ॥ सू० ॥ जा० ॥ ५ ॥ तपगच गगन रवि राज रे, आनंदसूरि मदा राज रे, थया हंसविजय सुखकाज ॥सू||६ ॥
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
مصمم
ی ما
نی
را به
میر ۔
یا
مع
در
श्रीमल्लिनाथजी महाराज.
:
ms!
=
=
ال : 3
I
:
و
و
ق بل از )
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
चक्रवर्ति. पुरोहित रत्न १
वार्धिक रत्न ४
स्त्री रत्न. पू
सेनापति रत्न २ ॥ गृहपति रत्न 2
हस्ति रत्न ६
छत्र रत्न ८]] दंम रत्नल खड्ग रत्न १० चर्म रत्न ११
अश्वरत्न ७.
कांगणी रत्न १२
चक्र रत्न १३ || मणिरत्न १४
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ५७ )
सवैया
नीदरडी वेरण बे, जगतनी वेरणज, इव्यनाव नेदें, वीतरागनें बखानी हे ॥ यमकी दासी देख खा सी, प्रगटही देत फांसी, शुद्ध बुध सुखरासी, लुटणे कुं गनी हे ॥ जोगी जोगी ध्यानी ज्ञानी, सबकुं हे डुखखानी, तोबी प्यारी सारी हित, कारी जनजानी हे ॥ एसी जानी त्याग प्रानी, जेथी थाय सुख खानी, वरे शिव राणी जिन, वाणी ये वखाणी हे ॥ १ ॥ सऊनजन परमाद विदारी, हैयामां धरी हेत अनंत ॥ जो तुं नोला प्रायु बोहोला, तूटे कुण संधान करंत ॥ कुटुंब कबीला प्यारी कारण, पहेलें तो परमाद घरं त ॥ अंतकालमें कुछ नहिं बनता, ब्राह्मणिपरें संक्लेश लहंत ॥ २ ॥
॥ न्यायांनो निधि बिरुदधारक महामुनि श्रीमदात्मा रामजी आनंद विजयजी माहाराजना प्रथम शिष्य मु नि लक्ष्मी विजयजी तेमना शिष्य मुनि हंस विजयजीयें या लघु ग्रंथनी रचना करी, ते गाम श्रीजामनगर नी हरजीजैनशाला तरफथी श्रावक अजरामर हरजी ये श्रीमुंबइमां श्रावक नीमसिंह माणकनी मारफत नि
सागर बापखानामां बपावी प्रसिद्ध कस्यो ॥ शुनम् ॥
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५७)
यशु६. १ निमिनाथ. २ द्यधात् ३ रोमस्यराजिः. ४ कम्नं ५ शील ६ जे ७ दोला G बोलो
ए सही १० आचारिज ११ चोमुखचित्त १२ राजवंशी १३ करूं
शुद्धिपत्रम्
शु६. पृष्ठ. पंक्ति. नमिनाथ ए ५ क्ष्यधात् १२ रोम्णःसुराजिः १४ कम्रम् शिल्प ज
३३ १४ मोला ३५१
م . م
~x r rew
car mae xee Mc
बोवो
ه
रुडी
السلہ
प्राचारज ४५ चोमुखकीचित्त ४६ राजवमी
४
करूं
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
या पुस्तकने आगलथी आश्रय यापी मदत कर नार साहेबोनाबानंददायक नाम तेमणे राखेला पुस्त कोना अंकनी संख्या सहित नीचे दाखल करीयें बैयें. क्रमांक. नाम.
पुस्तकांक, १ श्रीपालणपुरना दिवान साहेव मंगलमेता.६१ २ श्रीवडोदराना जैननारतवीयपुस्तकालय.४५ ३ शेत. गंजीरमल बांतीया श्रीयागरावाला. ३५ ४ श्रीपाटणमा सागरगहना नपाश्रयतरफथी
हस्ते शेठ. नगीनदास जवेरचंद. ३० ५ शेत. जीतमन्नजी नथमनजी गुनेला. ३० ६ शेत. नथमनजी धनराज अजमेरवाला. २० ७ शेत. करमचंद धरमचंद पाटणवाला. १० G शेत. खुशालीराम काशीराम गामनरतपुर. १० ए पारेख. रामजी जेसिंघ वगेरे संघ समस्त
गाम मुरबी ताबे बेला. १० दोशी. चतुरदास मुंगरसी जीजुंवाडा. १० ११ शेठ. कनैयालालफूलचंदसवाइजयपुरवाला १० १२ वोरा. रवजी वीरचंद.जामनगरवाला. १० १३ दोशी. खुशालचंदगोपालजीनवानगरवाला.१०
DD DD D
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
१४ शेत. देवसी रवजी नवानगरवाला. १५ शेत. उत्तमचंद वीरचंदगाम पाटण. १० १६ खजानची.उरगादासषनदासग्वालेर १० १७ वैद्यराज. नरसिंघलाल. लस्कर ग्वार. १० १७ गांधी. सुखलाल कस्तूर. धांगध्रा. १० १ए पारेख. रामजी जेसंग. बेला. २० शेत. नगवानदास हीराचंद सेहेर पाली. २१ जहवेरी. मूलचंद नेणसी जामनगर. २२ शेत. कस्तुर मोतीचंद जामनगर. २३ पारेख. वेलजी काला. जामनगर. २४ शेत. त्रीकमजी सामजी जामनगर. २५ शेत.बेचर जेराज नवानगर. २६ शेत. वीकमसी जेठा, नवानगर, २७ जहवेरी. गुलालचंद खीमजी नवानगर, २० वैद्य. चुनीलाल हरिनाइ वडोदरा. २ए जहवेरी. हीराचंद सुंदरदास वडोदरा. ५ ३० शेत. जगजीवनदास सुंदरजी वडोदरा. ५ ३१ शेत. गोपीनाथ ताराचंद गोटबेद सनखत्रा. ५ ३२ जहवेरी. गोकलना उत्तनदास वडोदरा. ५ ३३ गांधी. नानीनाइ हरजीवन वडोदरा.
cccccccccccaaaaaa
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ३ )
५
५
३४ जहवेरी. जयचंद हरखचंद वडोदरा. ३५ शेठ. सखाराम दुर्जनदास खानदेश धूलीया. ५ ३६ शेठ. पानाचंद देवराज जामनगर. ३७ शेठ. मूलचंदजी गुजेष्ठा जयपुर. ३८ शेठ. धवजी देवजी मुंबई बंदर. ३० शेठ. गुरमल्ल नथुमल्न दुशीयारपुर. ४० जैनप्रबोध सजाना मंत्री शेठ. सौभाग्यचंद उत्तमचंद जुनागढ.
४१ नाइ, मेलुमन गाम जंमघाला. ४२ शेठ. हरखचंद जयचंद जुनागढ. ४३ जहवेरी हंसराज वीरजी जामनगर. ४४ शेठ. हीराचंद सुंदरजी नवानगर, ४५ शेठ. दोशा राठोड नवानगर. ४६ शेठ. कस्तूर विजपाल नवानगर. ४७ शेठ. लीलाधर हरखचंद नवानगर. ४८ शेठ रूपसी देवजी नवानगर.
·
४५ मेता. माधवजी चतुरनुज नवानगर. ५० दोशी. मुतीचंद जवान नवानगर. ५१ बाबु. मेताबराय अमृतसर. ५२ जाई. प्रबीरचंद गाम जंमयाला.
En m
४
३
३
२
or
r
াr
श्
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
( ४ )
२
२
५३ नाई. जंमामल्ल गाम जंमयाला. ५४ नाइ. धनपतराय गाम जंमयाला. ५५ शेठ. माणेकचंद चुनीलाल जरतपुर. ५६ जहवे. कल्याणनाइ अमीचंद वडोदरा. २ ५७ गांधी. लालनाइ व्रजलाल वडोदरा. ५० जहवेरी. बोटालाल परजुदास वडोदरा. ५० गांधी. कालीदास व्रजलाल वडोदरा. ६० जहवेरी. स्वरूपचंद धोलीदास वडोदरा. ६१ शेठ. मुतीलालजी कुचेरे गाम धोलपुर. ६२ वाइ. चंचलवाई दलपतनाइ प्रमदावाद. ६३ दोशी. जरामल शीराज जामनगर. ६४ शेठ. हीरा मूलजी जामनगर. ६५ शेठ. ताराचंद मूलचंद प्राकलाद. ६६ पारेख, जेठा जसराज जामनगर. ६७ शा० हीरालाल जुगनाइ धांगधा. ६० शा. बगनलाल दोशानाइ धांगध्रा. ६० शा. दामरदास पीतांबर धांगधा. ७० शा. दीपचंद उकानाइ धांगध्रा. ७१ शा. नाहानचंद मंगलजी जाइ धांगधा,
७२ जैन सेवक जीवराज परागजी धांगध्रा.
•
זם BY b
१
ܐ
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
(५)
७३ गांधी. नजमसी उतम धांगध्रा. ७४ गांधी. उघड दीपचंद धांगध्रा. ७५ गांधी. बगनलाल मूलजी धांगध्रा. ७६ शा. वाडीलाल गोदर पाटण. ७७ शा. चुनीलाल बगु पाटण. ७७ शा. नहालचंद बोबर पाटण. ७ए पारेख. खेंगार मुंगरसी जामनगर. ७० दोसी. नेमचंद वालजी जामनगर. ७१ शा. अदेकरण वि० सिंघराज जामनगर. १ ७२ शा. परसोत्तम टोकरसी जामनगर. ७३ मेता. तलकसी कल्याणजी जामनगर. ७४ जहवेरी. वीरचंद खीमजी जामनगर. ७५ पारेख. कचरा मूलजी नवानगर. ७६ शा. परसोत्तम सुंदरजी नवानगर. ७७ मेता. हरखचंद नेएसी नवानगर. GG जहवेरी. कल्याणजी टोकरसी नवानगर, जए शा. घेला जेचंद नवानगर. ए० शा. रवजी कचरा नवानगर. ए१ शा. गेला लखमसी नवानगर. ए दलाल. टोकरसी देवजी नवानगर.
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए३ मेता. जुना नानजी नवानगर, ए४ दलाल. केशवजी नीमजी नवानगर. ए५ शेत. पोपट रणबोड नवानगर. ए६ देसाई. जवेरचंद धनजी नवानगर. ए मेता. माधवजी जीणा नवानगर. ए दोसी. देवजी हंसराज नवानगर.
एए शा. नेमचंद शिवजी नवानगर. १०० दोसी. चतुरनुज देवचंद नवानगर. १०१ ना. निहालचंद जगन्नाथ गाम नारोवाल. १ १०२ जाई. रुलराम सावनमन गाम नारोवाल.. १०३ शेत. तलकचंद माणकचंद मुंबइ. १०४ नाइ. उनिचंद गाम ऊम्याला. १०५ ना. मेवादास सहेर ऊमघाला. १०६ जा. चंजागजी लक्ष्मीनारायण गाम दोसार १०७ गांधी. खुशालना गुलाबचंद वडोदरा. १०७ जहवेरी. परशोतम ककुचंद वडोदरा. १०ए शा. कचरा वि० जीवन जुनागढ. ११० जाइ. स्वरूपचंदना माह्याना नवसारी. १ १११ वसा. सुंदरजी लखमीचंद जामनगर, ११२ शेत. खीमचंद वीरचंद खेरालु.
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
११३ मेता. टोकरलाल बगनलाल खेरालु. १ ११४ शा. जीवराज खोडीदास धांगघ्रा. ११५ शा. नीखाना रतनजी गाम मुंबई बंदर. १ ११६ शेंत. नगवान् वि० लवजी गाम कोलीयाक.. ११७ शा. नाश्चंद वि० देवजी गाम कोलीयाक. १ ११७ शा. नाणाकीणा गाम नावनगर. ११ए शा. पानाचंद धनजी गाम मुंबई बंदर. १ १२० शा. नानजी रामजी गाम मुंबई बंदर, १ ११ वोरा. पानाचंद वि० वीरजी गाम मुंबइ. १ १२२ शा.उसनजी वि० हरखचंद गाम मुंबई बंदर.'
॥ अथ पुनः दीवाली स्तवन शुरू करी बाप्यु॥
॥ धारणी मनावे रे मेघ कुमारने रे ॥ ए देशी॥ दीवालिने दाहाडे रे वीरप्रनु पामीया रे, अनुपम पद निरवाण ॥ तेणें दिन देवो रे सदु मिला एका रे, आव्या अपापापुरी ठाए ॥ दी० ॥ १॥ तिहां प्र नुवीर रे मोद जावाथकी रे, करी पापापुरी नाम ॥ अनुक्रमें पाव्या रे नंदीश्वर गिरी रे,करवा कल्याणनां काम ॥ दी० ॥ २ ॥ तेणें दिन काशी रे कोशल दे शना रे, त्यां गणराय अढार ॥ पोसह कस्यो रे तेणें आहार त्यागनो रे, संसारनो अंतकार ॥दी॥३॥
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते राजायें रे मनमां चिंतवी रे, जावदीपकनो अना व ॥ इव्यदीपक रे त्यां प्रगटाविया रे, थयो दिवालि प्रनाव ॥ दी० ॥ ४ ॥ तेणें दिन करी रे नवि दीप मालिका रे, विधि जयणायें जिनहार ॥ तिमिर मि टावी रेनिज बातमतणुं रे, करे शिवलनी स्वीकार॥ ॥ अथ श्रीपाटण मंझण श्रीशांतिनाथ स्तवन शु६॥
॥अपने पदकुंतज कर चेतन, परमें फसनांना चाहियें ॥ ए चाल ॥ शांतिनाथ महाराजकुं प्राणी, हृदय कमल रखना चाहियें ॥ ए तरण तारण हे वचनरस, जिनजिका चखना चाहियें ॥शांति॥१॥ अन्यदेव कामी क्रोधीकुं, त्यागकें उर नरखना चाहि यें, कुग शांत वदन हे इसीकुं, आप जरुर देख नां चाहियें ॥ शांति ॥ २ ॥ पांचमा चक्री सो लमा स्वामी, देख हर्ष लेना चाहियें ॥ ए खटखम बंमी बने महा, योगी निरख लेना चाहियें ॥शांति ॥३॥ पाटण सहेर फोफलीया वाडे, नाथ उत्तख लेना चाहियें ॥ ए परमप्रनु हे इसीका, नामकुंले रखना चाहियें ॥ शांति ॥४॥ गुन नाव समतासें जिनका, रूप हृदय लिखना चाहियें ॥ हंसा तेरेकुं एसे जिन, जीका गुण सिखना चाहियें ॥५॥
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ तुमें सांजलजो नरनारी, खाजे जैनशाला श गारी ॥ एांकणी ॥ गुरु याचार्य पदधारी, यानं दविजय उपगारि रे; तस प्रथम शिष्य हितकारि ॥ ॥ ० ॥ १ ॥ लक्ष्मी विजय सुखकारि, यया ज्ञानदा न अधिकारि रे, तसु करकमल शिरधारि ॥ ० ॥ ॥ २ ॥ मुनि हंसविजय गुणखाणी, कही नंदीसूत्र नी वाणी रे, शालामां प्रथम पधारि ॥ श्र० ॥ ३ ॥ तसु वंदन करी सुख जेगुं, जैनशालावर्णन केगुं रे, चित्तमां प्रति उलट धारि ॥ ० ॥ ४ ॥ जामनगर न मां, करी अधिक मन बांहें रे, अजरामरशेठें वि चारि ॥ ० ॥ ५ ॥ हरजीजैनशालानामें, करी ज्ञा नदानने कामे रे, खरच्युं धन तेमां नारि ॥ श्रा० ॥ ६ ॥ सवंत जंगलीस पसतालो, मास फागण ते सुविशालो रे, वदि एकादशी बुधवारि ॥ ० ॥ ७ ॥ स्थापन कीधुं मनरंगें, श्री संघने उलट अंगे रे, शुभ मूहुरत यो गविचारि ॥ ० ॥ ८ ॥ त्यां सौ लोको मली श्रा व्या, मनमां बहु आनंद पाव्या रे, गुं कर्तुं तस शोना सारि ॥ ० ॥ ९ ॥ नानार पुरुष नामाजे, त ज्ञानो दने काजे रे, धन दइ स्याप्या अधिकारि ॥ श्रा ॥ ॥ १० ॥ न्नवस्त्रादिक जन देले, ते इव्य उपगार क
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
रे रे, तस फल अनेकांतिक धारि॥ या॥११॥ नुपकार नावथी कहीएं, जिनधर्म पमाडी लहीयें रे, बे नेद तास निरधारि ॥ या० ॥ १२॥ चारित्र अने श्रुतधर्म, जेमां बहु गुणनो चर्म रे, श्रुतपूर्वक चारित्र चारि ॥ श्रा० ॥ १३ ॥ फल एकांते तिहां लहीएं, आत्यंतिक पण तस कहिएं रे,जु नंदी सूत्र विचारि ॥ आ॥१४॥ श्रुत केतां झान विचारो, जणी शा स्त्रने ते निरधारो रे, शुं कहीएं बद्ध विस्तारि ॥ श्राप ॥ १५॥ नपगार ते शेठे कीधो, जस वाद जगतमां लीधो रे, नानारने आनंद कारि ॥ श्रा० ॥ १६ ॥ जगनार वदे एम वाणी, चित्तमा घणी नलट प्राणी रे, जागी तस अति नपगारि ॥या० ॥ १७ ॥ न णी गणी अमे लावो लश्गुं, वली शेठजीने एम कही झुं रे, धन धन ले मात तमारि ॥ प्रा० ॥ १७ ॥ हरजी, वोरा कुलदीवो, चतुरां बाइ सुत घणुं जीवो रे, एम आशीश दीए नरनारि ॥ बा ॥ १५ ॥ ते नुं नाम सारथक नगीएं, आत्यंतिक काम जो गगी एं रे, होय अजरामर पदधारि ॥ या ॥ २० ॥ हिरालाल कहे कर जोडी, संघ आगल मानज मोडी रे, रहो शाला अविचल जोरि ॥ आ॥२१॥इति ॥
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
या पुस्तकने वांचवा जलवा माटे घणी संचाल श्री वी किंवा बाजोट उपर राखीने खोलवुं वांची जी रह्यापी विनयपूर्वक फररी रुमाल प्रमुखमां बांधी स्थाने राख. कोइ पण रीतें ज्ञाननी याशा तना थाय तेम न करवुं किंबहुना सुझान्प्रतिकथितेन.
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
_