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(५७) नापा ॥२॥ समेतशिखर शैलें बीजे नव, ईन नयो बलवान ॥ न पा ॥ अरविंद रा जरुपियें प्रतिबोध्यो, जातिस्मरण ढवो झान ॥न पा ॥३॥त्रीजे नव अष्टमे देवलोकें, देव दुवो सुख सार॥न पा०॥ तुरिय नवें विद्याधर नामें, किर्णवेग नूपाल॥नपा॥॥ कुलक्रमागत राज्य त्यागि के, गुणनिधि दुवो अणगार ॥ न पा॥ बारमे देवलोकें पंचमे नव, बहे मादाविदेह धार ॥ न पा ॥५॥ वजनान नामें नरपति तिहां, राजवंशी मुनि थाय ॥ न पा ॥ सातमे नवमध्यमग्रैवेकें, चक्रि अष्टमें नवें थाय॥न पा॥६॥ तृण परें षट्खंमनां सुख गंमी, प्रांतें थयो मुनिराय ॥न पा० ॥ नवमे त्रिदसो प्राणत देवलोकें, दशमे पार्श्वनाथ थाय ॥न पा० ॥ ॥ अ ष्ट कर्मनो नाश करीने,मुक्तिपुरीमांजाय॥न॥