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________________ (४७) पा० ॥ आत्मचंदने लक्ष्मी मुनिना, विनयने करो सुपसाय॥न पा० ॥6॥ ॥अथ श्रीकेसरीयाजी स्तवनं ॥विमलाचल नितु वंदियें ॥ ए देशी॥ के सरीया नितु वंदीयें, कीजें एदनुं ध्यान ॥ पार उतारे नवतणा, नितु जपतां नाम॥ केसरी०॥ ॥१॥ संघ ते देश विदेशना, आवे ताहरी यात्र॥पूजे चंदनकेसरें,वलीलेपे गात्राकेसरी० ॥२॥ श्यामली मूरति सोननी, लागे मुकम न प्यारी ॥ देखतां उरगति टले, दैये आनं दकारी॥ केसरी॥३॥ इति॥ ॥अथ श्रीसीमंधरजिनस्तवनं॥ ॥श्रीरे सिहाचल नेटवा, मुझ मन अधि क उमायो॥ ए देशी॥ श्रीसीमंधर सादेबा, अवधारोने स्वामी॥ अरज करूं तुम आगलें, प्रनु शिवगतिगामी॥ श्री० ॥१॥ दीनपुण्य ना जोगथी, तुम दरिसन खामी॥ते मुझने प्र
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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