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(५३) व्या रे नंदीश्वर गिरी रे, करवा कल्याणनां का म॥दी ॥२॥ तेणें दिन काशी रे कोशल देशना रे, त्यांगणराय अढार ॥ पोसह कयो रे तेणें आहार त्यागनो रे, संसारनो अंतकार ॥दी॥३॥ ते राजायें रे मनमां चिंतवी रे, ना वदीपकना अनाव ॥ व्यदीपक रे त्या प्रग टाविया रे, थयो दिवालि प्रनाव ॥ दी॥४॥ तेणें दिन करी रे नवि दीपमालिका रे, विधि जयणायें जिनधार॥तिमिर मिटावी रेनिज आ तमतणुं रे, करे शिवलमी स्वीकार ॥दी॥५॥ ॥अथ श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ स्तवन लावण॥
॥अपने पदकुं तजकर चेतन, परमें फसनां ना चाहियें ॥ ए चाल ॥ श्रीशंखेश्वर पार्श्वनाथ चेतन दिलमें रखना चाहिये ॥ ए अद्भुत ध्यानी सरण इस, जिनजीका लेना चाहिये। श्री०॥१॥कमठ धरणपतिजी पर जिनकी, तुल्यदशा जोना चाहियें। एक उखदायी है छ