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(२३) सेवो सु० ॥१॥ चार अतिशय जनमतीवार, कर्मनाशयी नये अग्यार॥गणीस किये सुर ने उदार, चोत्रीश संख्याथी रे ॥ सेवो सुन ॥३॥ समवसरण बेसी जनराज, पांत्रिश गु गयुत वाणी ससाज ॥ नव्य जिव श्रवणनके काज, करता करुणायी रे॥ सेवो॥३॥ धर्म दान देई महाराज, अनेक प्राणीके तारे जाज ॥ मेरी क्युं नही राखी लाज, तकसीर करीयी रे॥ सेवो॥४॥ अथवा तुम तरणी सम न्या य, जगतजीवका तिमिर पलाय ॥ घूक प्राणी कुंसएव थाय ॥ तस उरित नड्याथी रे॥से वो॥५॥तो पण तुम गुणसरनी पाल, हंस रमावो दीनदयाल ॥ निजवाणी मोतियनकी माल, आपी करो राजी रे॥ सेवो सुपार्शजिन देव, आज तुम नाव घणेथी रे ॥ ६॥इति ॥
॥ अथाष्टम श्रीचंप्रनजिनस्तवनं॥ ॥ मल्लिजिन नाथ जी व्रत लीजें रे॥