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॥ ए देश ॥ चंदननाथ जी सुख दीजें रे ॥ सुख दीजें माहारा प्रभु सुख दीजें ॥ चंश्प्रन०॥ माता लक्ष्मणायें प्रभु जाया रे, ति हां इंद्राणि मलि प्रायां रे, जई मेरुशि खर नवराया || चंद्र० ॥ १ ॥ मदसेनराजा कु लचंद रे, नविमन पंकज विकसंत रे, मुनि मधुकर माने वे धन्य ॥ चंद्रप्रन० ॥ २ ॥ नि शाकर नामें जीज्ञान रे, जगजीवने शीतलका र रे, माने सुधा त कयुं पान ॥ चंद्रप्र० ॥ ॥ ३ ॥ प्रभु दीक्षा अवसर जाणी रे, कृषि स दस सहित गुणखाणी रे, वस्या संयम शुभ प टराणी ॥ चंद्रप्रन० ॥ ४ ॥ उपासकविजय अ निधानें रे, देवी भृकुटी बे नामें रे, मानुं लक्ष्मी तामें ॥ चं० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ नवम श्रीसुविधिजिनस्तवनं ॥ ॥ बोड चला बनजारा ॥ मुनें॥ ए देशी ॥ सुविधिजिन कुमति निवारी, मुऊ सार करो दि