SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २४ ) ॥ ए देश ॥ चंदननाथ जी सुख दीजें रे ॥ सुख दीजें माहारा प्रभु सुख दीजें ॥ चंश्प्रन०॥ माता लक्ष्मणायें प्रभु जाया रे, ति हां इंद्राणि मलि प्रायां रे, जई मेरुशि खर नवराया || चंद्र० ॥ १ ॥ मदसेनराजा कु लचंद रे, नविमन पंकज विकसंत रे, मुनि मधुकर माने वे धन्य ॥ चंद्रप्रन० ॥ २ ॥ नि शाकर नामें जीज्ञान रे, जगजीवने शीतलका र रे, माने सुधा त कयुं पान ॥ चंद्रप्र० ॥ ॥ ३ ॥ प्रभु दीक्षा अवसर जाणी रे, कृषि स दस सहित गुणखाणी रे, वस्या संयम शुभ प टराणी ॥ चंद्रप्रन० ॥ ४ ॥ उपासकविजय अ निधानें रे, देवी भृकुटी बे नामें रे, मानुं लक्ष्मी तामें ॥ चं० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ अथ नवम श्रीसुविधिजिनस्तवनं ॥ ॥ बोड चला बनजारा ॥ मुनें॥ ए देशी ॥ सुविधिजिन कुमति निवारी, मुऊ सार करो दि
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy