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( १६ ) ॥ श्री गौतमाय नमः ॥ ॥ मुनि दंस विजयविरचित चोवीशी प्रारंभ ||
तत्र प्रथम
॥ श्रीदिनाथ स्वामि स्तवनं लिख्यते ॥ ॥ कुमकुमने पगले पधारो राज, कुमकुमने प गले ॥ ए देशी ॥ तम तुं तो यदि जिणंद नजले, तम तुं तो आदि जिणंद न ले || एक ॥ जुगलाधर्म निवारण स्वामी, शी ल कला सज ले ॥ तम ॥ १ ॥ प्रथमरा य आदिनाथ कहावे, प्रथम मुनी सघले ॥ आतम ॥ २ ॥ प्रथम तीरथना नाथ नकी बे, ऊट दरिसन कर ले ॥ तम ॥ ३ ॥ संयम लइ निरादार जगत प्रभु, वरस फरया पगले ॥ तम ॥ ४ ॥ श्रेयांस घर प्रभु दानथकी युं, धव्य घणुं ढगले ॥ तम ॥ ५ ॥ के वलज्ञान दिवाकर थई प्रभु, मोद गया मग लें ॥ तम ॥ ६ ॥ ए प्रभुनुं हंस ध्यान ध रीने, शिवसुखडां मंगले ॥ ० ॥ ७ ॥ इति ॥