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(१५) अर्थः-जेमनुं हस्तरूप पात्र कमलसरखं , जेम नुं शरीर नामंगल युक्त , तथा जेमनो कंठ शंख नी परें त्रिवलीविराजित ने, एवा रूडा श्रीमन्निनाथ स्वामी मने पवित्र करो ॥ ४ ॥
स्फुरत्कौमुदीकांतसक्रप , गजेन्शेण तुल्यं च कम्नं प्रयाणम् ॥ सुपक्काग्रतायं विनात्योष्ठयुग्मं, ससन्मलि ॥५॥
अर्थः-पूर्ण चंमाना प्रकाशनी परे कांतियुक्त जेमनुं मुखकमल ने, गजराजनी परे सुंदर जेमनुं ग मन , पाकेला थाम्रफल सरखा अारक्त वर्णवाला जेमना बन्ने नष्ट शोने , एवा रूडा श्रीमल्लिनाथ स्वामीमने पवित्र करो ॥५॥ शुनादभ्रलदार्जुनश्वेतदन्त, तति ति यस्य प्र नोर्नित्यमेव विशालारुणश्रीयुतंदृष्टियुग्मंस०६ __ अर्थः-जेमनी सुंदर, सर्व सामुहिक लक्षणोयें क री युक्त, अने अर्जुननामना तृणनी परें सफेत रंग वाली दंतपंक्ति ने, तथा कतिगामी अने किंचित
रक्तवर्णनी शोजायें युक्त जेमनां बे नेत्रो में, एवा रूडा श्रीमन्निनाथ स्वामी मने पवित्र करो॥६॥इति