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॥ अथ चंद्रप्रभजिनस्तवनं ॥ ॥ खियां चंद्रप्रनंजी में आज लगी, या ज लगी प्रभु आज लगी ॥ ० ॥ चंद्रप्र श्रीधर्मजिनेश्वर, चोमुख चित्त चाद लगी ॥ ० ॥ १ ॥ रिसावनमें सोदे जिनवर, आसपास सिधचक्र मिली ॥ ० ॥ २ ॥ ती न बत्र शिर ऊपर सोहे, गलबिच देमकी माल पडी ॥ ० ॥३॥ धातुमयी प्रभु बिंब विराजे, दोष ढार रहित वली ॥ ० ॥ ४ ॥ यानं दगुरुनें लक्ष्मी विजयनो, शिष्य कहे मुऊ श फली ॥ ० ॥ ५ ॥ इति ॥
॥ अथ श्री पार्श्वनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ पार्श्वनाथ अवतार देजी अवतार, नया बणारसमें॥तस दस नव में वर्णन करशुं, कल्प सूत्र अनुसार ॥॥पा॥१॥ प्रथम नवें पोत न पुरनगरें, पुरोहितपुत्र सुरसार || || धार्मि क मरुभूति तिहां प्रगट्युं, नाम नलुं जयकार ॥