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________________ ( ५६ ) , तासें जिनका रूप हृदय लिखनां चाहियें ॥ दंसा तेरेकुं एसे जिन, जी का गुण सिखनां चाहियें ॥५॥ ॥ अथ गहूंली ॥ वंदि जिनजी प्रभु पास रे, जसु वंदे लील विलास रे, गानं गुरुगुण मनने उल्लास, सूरीश्वर वीनति अवधारोरे ॥ जामनग रनी मांदि पधारो ॥ सू० ॥ १ ॥ गुरु दत्री कुल शुभ पाया रे, बढु गाम नगरने दीपाया रे, ते यी लागी बे तुम ती माया ॥सूणा जाणाश प्राणीगम करवायी विहार रे, थाशे लाभ घ पो उपगार रे, नरनारी यशे व्रतधार ॥ सू॥ जा० ॥ ३ ॥ जामनगरनो संघ तुमारी रे, वाट डी देखे दिल धारी रे, तुम यावे चढशे खुमा री ॥ सू० ॥ जा० ॥ ४ ॥ विनती सुणी संघ नी सारी रे, जामनगरनी मांदे पधारी रे ॥ करो देशना आनंदकारी ॥ सू० ॥ जा० ॥ ५ ॥ तपगच गगन रवि राज रे, आनंदसूरि मदा राज रे, थया हंसविजय सुखकाज ॥सू||६ ॥
SR No.010385
Book TitleJinendra Stuti Ratnakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages85
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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