Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(५४) जाकू, सुखदायी कहेना चाहिये॥ श्री० ॥ २॥ यादवजनकी जरा निवारी, सोबी सुण लेनां चा हियें ॥ ए चमत्कारी है खरेखर, खूब समऊ लेना चाहियें। श्री० ॥३॥ चार वार तुम हारें श्राव्यो, अरजि सुण लेना चाहिये । हंसाकू सादेब तुमारा, चरणांबुज देना चाहियें ॥४॥ ॥अथ मंत्राणा मंमन श्रीआदिनाथ लावण॥
॥झपन जिणंद विमलगिरि मंमण, मंमण धर्मधुरा कहियें ॥ए चाल ॥ आदिनाथ सेवा कारण नवि, केसर खुब घसनां चाहिये। मांदे कपूर मिलावी पूज्यकी, पूजामा वसनां चाहिये ॥आदि॥१॥शंकादिक दूषणसेंती जन, ज लदीयी खसनां चाहियें। जिन फूलोसें पूजी हृदयमां, खूब तरे दसनां चाहियें ॥ आदि। ॥२॥ रथयात्रादिक कार्य करणमा, कम्मरकुं कसनां चाहियें॥नवभ्रमण मिटावे फंदमें, औ र नदि फसनां चाहियें ॥आदि० ॥३॥गाम

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