Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 61
________________ (४५) कु जु दीजीयें, परदितना कामी ॥ श्री० ॥ १ ॥ डु ष्ट धृष्ट पापिष्ट बुं हुं बेक हरामी ॥ तुम वि ए मुक तारशे, प्रभु अंतरजामी ॥ श्री० ॥ ३॥ ढुं मागं बुं एटलुं, साहेब शिर नामी ॥ तुम प दपंकज हंस ज्युं, थानं हुं वीरारामी ॥४॥ इति ॥ ॥ अथ गहूंली लिख्यते ॥ ॥ चालोने नवि चालोने मुनि, तमराम जी वंदन रे || शांत मुषा शोने मुनिवरनी, क लधौतवर्ण शरीर रे | पंकजदलसम नेत्र बे जे दनां, ईर्यासमितिमां थीर रे ॥ चालो० ॥ १ ॥ दान प्रानूपण करकमलें बे, श्लाघा करवा यो ग्य रे ॥ गुरुनां चरणवंदनरूपी बे, शिरनूपण संयोग रे ॥ चालो० ॥ १ ॥ मुखें सत्यवचन रू पीबे, संघने आनंदकारी रे ॥ श्रुतश्रवण रूपी कानें बे, भूषण सुखकारी रे ॥ चालो० ॥३॥ हृदयें स्वच्छ वृत्ति वे जेहने, मायानो नहीं लेश रे ॥ भुजकें मदा प्राक्रमरूपी, आभूषण सु

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