Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 55
________________ (४५) ॥ अथ श्रीसिक्ष्चक्रमादाराजस्तवनं ॥ ॥ सेवोजी तुमें नवपद जगदितकारी, सब आल जंजाल निवारी॥ सेवो॥ए आंकणी॥ देवगुरु ने धर्मतत्व दे,श्नमें सवि सुखकारी॥देव तत्त्व अरिहंत सि दे, परमानंद पदधारी ॥ सेवो जी० ॥१॥ आचारिज पाठक ने साधु,गु रुतत्त्वे मनोहारी ॥ दरिसन झान ने चारित्र तप दे, धर्मतत्त्वमकारी ॥ सेवो जो० ॥२॥ राजा श्रीपाल राणी मयणा दोय, कर्मकलंक निवा री॥ विधियोगें आराधन कर के, ढुवे इनपद अधिकारी॥ सेवो जी० ॥३॥ इनका कथन श्रीपालचरित्रं, बोहोत किया दे नारी॥ जस विधिसे आराधन करशे,सो लेदशे नवपारी॥ सेवो जी०॥४॥ सर्व मंगलमांप्रथम एहि दे, सिश्चक्र जयकारी॥ अदनिश इनमें रमण क रे सो, शिवलदमी वरे नारी ॥ सेवो जी०॥५

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