Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(४१) दां रे एतो पुण्यनी रेख ॥ विमला॥१॥ त टिनीपतिना तट प्रतें करेलीला,हारे तालध्वज उत्संगमां क्रीडा, दारे करती काटे कर्म कीला, हारे नदी सर्वमा सार ॥ विमला० ॥२॥कोड सहस नवनां कस्यां नवि प्राणी, हारे निजपा तकनी करे दाणी, दारे एहवी जिन गणधरनी वाणी, हारे धरी पगलुं एक ॥ विमला ॥३॥ रहित होवे कर्मरजथकी पंथरजथी, दारे नव भ्रमण मिटे त्यां भ्रमथी,हां रे थिर संपद दोय अव्य व्यययी, हारे पूजे दोय पूज्य ॥विमला ॥४॥कंमुराय मादा पापीयो इहां आवी, दारे शीलसन्ना काय दीपावी,दारे व्रत शस्त्रयीमो द दरावी, दारे वरी शिववधू सार ॥ विमला ॥५॥ उष्ट अदनी राजादनी तलें नालो, हां रे आदिनाथ चरणने जुहारो; हारे मोहराय सुनटने निवारो, दारे टालो नव पीड ॥ विम ला॥६॥गिरिनूपति शिर सेहरो जिनना

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