Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(३७) ॥१॥ गदाकौमोदिकी वाल के कीनी, जेसी वृक्षाकी माल रे॥जे ॥ ने ॥२॥ अद्भुत् बल देखी चित्त चमक्यो, हरि नयो दरिवत काल रे॥ दण॥ने ॥३॥ राजुल रूडी गे ड चले प्रनु, जाई चढे गिरनार रे ॥ जाण ॥ ने॥४॥अद्भुत ध्यान धरि तिहां कीनी,शिव लक्ष्मी स्वीकार रे॥ शि॥ ने॥५॥ इति॥ ॥ अथ त्रयोविंशति श्रीपार्श्वजिनस्तवनं ॥
॥राग खमाच ॥ शांतिवदनकज देखिने, मधुकर मन लीनो रे॥ए देशी ॥ पार्श्वनाथ महाराज आज उर्गति जुःख वारो रे॥ नलांड गति उःख वारो रे॥ पार्श्व ॥ ए आंकणी॥तें प्रनु राग जरग मादाक्रूर, वक्र दारुण कयो च कचूर, विनतानंदननी परें, नलां निर्नय सुख लीनो रे॥नलांग ॥ पार्श्व ॥१॥ अत्यंत वेषी रोपी ष, निषणने प्रनु तुमें विशेष,महा नट नी परें जिनेश,नलां जीत्यो जगस्वामी रे॥न

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