Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(२६) ॥मुने ॥ २ ॥ तुमें पाप तणा नेदनार गे जो, तुमें कुमतीना बेदनार गे जो मु॥३॥ तुमें अनयदान देनार गे जो, नवि जीवने पास लेनार गे जो ॥मुने॥४॥ दूं तो संसार मां पडी रह्यो जो, त्यांतो पुःखथकीजलि रह्यो जो॥मुने॥॥प्रनु सेवक सुखीयो कीजीयें जो, शिवलमीथीमुखीयो कीजीयें जो॥मुने॥६॥ ॥अथ एकादश श्रीश्रेयांसजिनस्तवनं॥
॥चिंतामणिपास प्रन अर्ज करूं में तुमकुं ॥ए देशी॥प्रनु श्रेयांस सुणो आप मेरी बा त कही, तम विना कोण धरे कान टक सपो तो सही ॥प्रनु श्रे॥१॥ में हुवा सनाथ अब प्रनु तुमदाथ ग्रही, तुम विना कोण करे सुख मुने पास लही॥प्रनु श्रे॥२॥ अंग मेरा संग करे चंग गुण केरा नही, एक मुने रं ग तेरे नामका जेसा ने दही॥प्रनु श्रे॥३॥ करो मुझे हितधार संसार कारागार बदी, हंस

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