Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 37
________________ ( ए) कर पदवी पामी, झानरूप तुमें गुणधामी, यो गीं पदें विशरामी॥ विमल ॥२॥ संसार मां लदी अवतार, थया एकांतें हितकार, ज गनाथ तुमें धरी प्पार, कस्यो मोदमारगनो न हार ॥ विमल ॥३॥ संसारसमुत्थी आज, करवा नहारने काज, देखाडण मुक्तिनुं राज, पाम्या संयम श्रीमादाराज ॥विमल ॥४॥ ॥ अथ चतुर्दश श्रीअनंतनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥अब तो पार नये दम साधु ॥ए देशी॥ ॥राग काफी॥ अनंत नाथ महाराज तुमें प्र नु, मुझ मन वसज्यो मदेर करी रे॥ए आंक गी॥ मन मादरूं मेलु ले साहेब, रदेवे नही शु न ठगम ठरी रे॥तिण कारण सादेब तुम आ गल,अरज करुं बुं पाय पडी रे॥अनंत॥२॥ जेम मलिन जल कतक चूर्णना, जोगथकी न मलता ग्रदे रे॥तिम तुम जोगथकी मन मा दारूं, शांत थई स्वबताकुं लदे रे ॥ अनंत

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