Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(२७) लदे वास तुम चरणकज पास रही॥प्र॥४॥
॥ अथ दश वासुपूज्यजिनस्तवनं॥
॥लावणी॥श्रीअजितनाथ माहाराज ग रिबनीवाज ॥ए देशी॥ श्रीवासुपूज्य मादा राज, सकल सुख काज, सुधारो आज, सुधा रो आज ॥ जयवंता गे जगमांदि, तुमें माहा राज ॥ ए आंकणी॥ देवोमां जेहवो इंज, ता रामां चंड न्यायीमां राम,न्यायिमां राम ॥तेम सुरूपवंतमां रूडो दीसे काम ॥ रूपवंतीमांदे नार, खरेखर सार,विराजे रंना,विराजे रंना॥ तिम वादित्रोमां वागे रूडी नंना ॥ साहासि मां रावण आप, खपावी पाप, कयुं निज का ज, कस्युं निज काज ॥ ज०॥१॥ऐरावत ह स्तिमांदि, बडो ने तांदि, बीजो कोई नाही, बी जो कोई नाही॥तिम अनय विराजे बुध्विंत नी मांदि॥ तीर्थोमां मोटुं तेद, शत्रुजय जेद, नथी कोई बीजुं, नथी कोई बीजुं॥ जिम पुण्य

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