Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 33
________________ (२५) लधारी॥ ए आंकणी॥ सुग्रीव राजा कुल आय, जब रामा मात मुलाये रे, तव प्रनुन की किलकारी॥मुक० ॥१॥ जिन यौवन व यकुं पावे, तव लोकांतिक सुर आवे रे, त्यो दी दा जगहितकारी। मुझ० ॥२॥संयमरमणी जब पाई, तव मन पर्यव दुवो धाईरे, पी के वल ज्ञान स्वीकारी॥ मुझ० ॥३॥ मिल इंज्ञा दिक देव आश्, शुन समवसरण बनाइ रे, सु णि वाणी मोदनगारी॥ मुझ०॥४॥ सब क मौका बंध गेडाई, दोय धर्म शुक्त ध्यान ध्या यी रे, शिवलदमी लदी प्रनु पारी मु॥॥ ॥अथ दशम श्रीशीतलनायजिनस्तवनं॥ ॥हूँ तो मुली गयो अरिहंतने जो ॥ए देशी ॥ मुने शीतल जिनशुं प्रीतडी जो, प्रनु मूरति शीतल दीग्डी जो, तेथी आंखडलीमा हरी गरी जो॥ मुने॥१॥प्रनु कल्याणनां मंदिर जो जो, तुमें मेरु गिरी परें धीर गे जो

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