Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(३४) प्रतिमा पूजी ने, रायपसेणी पाठ ॥ते पण कु मतीकर्णविवरमां,तप्त त्र ज्यु गठ॥अरना॥ ॥५॥ चैत्यशब्दनो ज्ञान अर्थ तुं, करे धरीम न हाम ॥ पण पंमित हंसोनी मांदी, काक परें तुऊ धाम ॥ अरना०॥६॥ते कारण कह तुझ कुमती, सनिल मोरी वात ॥ अरजिनवर चरणांबुज सेवो, हंस परे दिनरात॥०॥७॥ ॥अथएकोनविंशति श्रीमल्लिनाथ जिनस्तवन।
॥राग परज॥ निश दिन जो तारी वाट डी, घेर आवोने ढोला॥ए देशी॥ मल्ली जिने श्वर सादेबा, वसीया मन मोरा ॥ हृदयकमल थापी करी, धरूं ध्यान ढुं तोरा ॥ मल्लीजि ॥ ॥१॥मादादेव तुझ मान के,अन्य देवकुं गेडा ॥ जिस तुल्य जगमां को नदी, उनका कुण जो डा॥ मनीजि ॥२॥ अनुचित कथन करण सें, ब्रह्मा शिर तोडा ॥ जागृतराय मदनसें,र वि बन गया घोडा।मल्लीजि॥३॥वचन भ्रष्टता

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