Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 40
________________ (३२) कज तोले, मृगनेत्र नहिं जन बोले ॥ शांति० ॥ २ ॥ पदवी बे पामी रे, चक्रीजिन स्वामी रे, वंड बुं हुं शिर नामी, नही तुम दरिसनमां खा मी ॥ शांति ॥ ३ ॥ तु समो कोई दानी रे, जगमां नही प्राणी रे, तुम मुक्ताफलसम वाणी, चाखी हंसें गुण खाणी ॥ शांति० ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ सप्तदश श्री कुंथुनाथ जिनस्तवनं ॥ ॥ राग दादरी ॥ चाल इंग्रेजी वाजानी ॥ कुंथुजिनेंद्र चंद्र प्रभु ऐसी क्या करी, दमकुं लगाई नेद प्रीत नरशुं करी ॥ कुंथु ॥ १ ॥ अपना सुणाइ नाम मेरा चित लीया दरी, अ क्या गुनाद मेरा प्रीतिसें गये मरी ॥ कुंथु ॥ ॥ २ ॥ तुम दरसकुं तरसे बे मेरी यांखडी ख डी, प्रभु दीजीयें दरस माफ मागुं पग पडी || कुंथु० ॥ ३ ॥ तुम ध्यान बिना जाय मेरी पाप में घडी, तुम मूरति बिन ध्यान मेरा जाय बेग डी ॥ कुं० ॥ ४ ॥ जिस्सें तुमेरा नेद, जस्सें मेरा

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