Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 41
________________ बी वली, प्रनु कीजीयें दयाल मले लक्ष्मी नली॥ कुं॥५॥इति कुंयुजिनस्त॥ ॥ अथाष्टादश श्रीअरनायजिनस्तवनं ॥ ॥ श्रीश्रीशांतिनाथ, जोडुं ढुं बे दाय, नमी करुं प्रणाम, नित उठीने प्रनात ॥ ए देशी॥ अरनाथ जिनराज, पकड कुमति ! दाय, तुं हो य जासनाथ, नदि तो रेगा दिन रात ॥ ए चाल ॥साची मूर्ति सादेबकी, ऐसीनहि को ई दोय ॥ जैनधर्मना पंमितोयें, परखी लीधी सोय॥ अरना ॥१॥ शैपदीये प्रतिमा पू जीने, ज्ञातासूत्रे जोय ॥ यदादिकनी प्रतिमा आगल, नमुबुणं नदि दोय ॥अरनाथ ॥२॥ जंघाचारण विद्याचारण, प्रतिमावंदन काज ॥ नंदीश्वरही जे पदोता, नगवती देखो आज ॥अरना ॥ ३ ॥ जो ते मुनियो विद्याथी वली, सेल करनकुं जाय ॥ तो त्यांना परवतने वंदी, केम नदी मकलाय ॥ अरना ॥४॥ सूर्याने

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