Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 22
________________ (१४) ॥ नुजंगप्रयात वृत्तम् ॥ सुरंनोपमं यस्य सारोरुयुग्मं, सुवर्णस्य कांच्या युतं श्रोणिचक्रमालुलढुंगवद् नाति रोमस्यराजिः, स सन्मल्लिाशा अर्थः-जेना सुंदर बे साथल कदलीस्तंन सरखा जे, जेनो मध्यनाग सुवर्णमय कांचीथी शोने जे, जे नी रोमराजि चंचल चमर सरवी शोने जे, एवा रू डा श्रीमन्निनाथस्वामी मने पवित्र करो ॥ २॥ प्रनामंमलैममितं नानिप , त्रिनिः पं तिनी राजमानं पिचंमम् ॥ विशालं वि नातिप्रनोर्यस्य वदः,ससन्मल्लि॥३॥ अर्थः-जेनुं नानिकमल,प्रनाममलें करी शोने में, जेनु उदर त्रिवलीयें करी शोनायमान ने, जेनुं वक स्थल विशाल होवाथी शोने के, एवा रुडा श्रीमन्नि नाथ स्वामी मने पवित्र करो ॥३॥ सुराजीववशजते पाणिपात्रं, जिनाधी श्वरस्य प्रनायुक्तगात्रम् ॥ध्रुवं कंबुसत् कंपीठोपमानं,ससन्मल्लिनाथो॥४॥

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