Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 21
________________ (१३) मना यया ॥ २ ॥ ते हंसविजय पोतानी जक्तिना स मूहथी, जूदा जूदा बंदोवाला एवा सारा श्लोकथी सर्व भगवानोनी गुणोथी व्याप्त रूपवाली स्तुति करता हवा. पालथी पोपटनामना ब्राह्मण, ते स्तुतिने सरल ने सुंदर गुजराती भाषायी युक्त करता हवा ॥ ३ ॥ उपर लखेली स्तुतिमां प्रमादथी बुद्धिना दो पथी अथवा मनना चपलपणाथी जे कांई उल थये ली होय ते पंमित पुरुषोयें सारी रीतें शोधवी ॥ ४ ॥ ॥ अथ श्रीमल्लिनाथ स्तोत्रम् ॥ ॥ भुजंगप्रयातवृत्तम् ॥ जिनेंद्रस्य यस्यास्ति जंघायुगं च, वरेण्येंद स्तींप्रहस्तोपमं तत् ॥ समं यस्य संगुप्तजानु ६यं वै स सन्मल्लिनाथो जिनो मां पुनातु ॥ १ ॥ " अर्थः- जेनुं जंघायुग्म जे बे, ते ऐरावत हाथीना दामनी पढें वर्तुल ने सुंदर बे, तथा जेमां बे जानु गुप्त रह्या बे, अने जे बन्नेनो थाकार सरखो बे, एवा जंघायुग्मना धारक रूडा मल्लिनाथ जिन (म लिनाथ स्वामी ) मने पवित्र करो ॥ १ ॥

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