Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 20
________________ (१३) ॥ वसन्ततिलकावृत्तम् ॥ सोऽयं स्वनक्तिनरतो विविधैः सुपये,श्चके स्तुतिं नगवतां गुणयुक्तरूपाम् ॥ पश्चा यधात्सरलया च सुगुजराख्य, वाण्या शु काख्यधरणीत्रिदशो दि युक्ताम् ॥ ३॥ ॥ अनुष्टुवृत्तम् ॥ प्रमादै घिदोपैर्वा,मनश्चापलकेन वायजा तं स्खलनंह्यत्र, तत्संशोध्यं सदा बुधैः॥४॥ अर्थः-पंमित पुरुषोयें उत्तम पदने विषे स्थापे ला, आश्चर्यकारक ज्ञानवाला, लोकोने उत्तम ज्ञान प्रकाश करवामां सूर्यसमान, गु८ बुद्धिवाला अने गु गोना गौरवथी युक्त तथा सुंदर एवा शास्त्ररूप कम लने विषे सूर्यसमान प्रकाशयुक्त मुखवाला पोताना शिष्योथी वीटायेला एवा आत्मरामनामनाथाचार्य, प्टथिवीमा सर्वदा जय पामो ॥१॥ ते आत्मारा मजीना शिष्यरूडा ज्ञानवान् अने रूडी बुद्धिवाला, लक्ष्मीविजय नामना थया. ते लक्ष्क्षीविजयना शिष्य बुद्धिमान तथा गुणोना एक नंमाररूप हंस विजय ना

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