Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(१०)
॥ मंदाक्रांतावृत्तम् ॥ वंदे पार्श्व प्रवरविनवं पार्श्वसंसेव्यपाश्र्वं, क ल्याणानां विपुलसदनं राजमानप्रनावम् ॥ सत्कल्पडं त्रिनुवनमनःकल्पनातुल्यदानात्, वामाकुदिप्रवरसरसीराजहंसोपमानम् ॥१३॥ ___ अर्थः-नुत्तम वैनववाला, पार्श्वनामनो यद जेना पडखांने सेवे ते तथा कल्याणोना विस्तारवाला घररूप, शोनायमान प्रतापवाला, अनेत्रण नुवन ना प्रागिनी मननी कल्पनाथी अतुल्य दान देवा थी उत्तम कल्पवृदरूप, वामादेवीना उदररूप उत्तम तलावडीमां राजहंससमान, पार्श्वनाथ जगवान्ने हुँ नमस्कार करुं बुं ॥ २३ ॥
॥शार्दूलविक्रीडितवृत्तम् ॥ विभ्राजिष्णुकलाकलापकलितग्लावर्कयुग्मेन च,समक्त्या विनयान्वितेन विदिता पूजा दियस्य प्रनोः॥स श्रीवीरजिनः प्रनावनवनं श्रेयांसि दिश्यात् सदा,नंतझानविशुश्रूपकलितः कामे नपंचाननः॥३॥इति चतुर्विंशति जिनस्तुतिः

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