Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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जयंतनामना देवलोकथी च्यवेला जगतना स्वामी, प्राणियोने शांतिरूप सुखना करनार, अने कर्मरूप वे लने नाश करवामां कुगर (कुवाडासमान) जे म निनाथ जिनें, ते जय पामे ३ ॥ १५ ॥
॥त्रोटक बंदः ॥ मुनिसुव्रतनाथ तवक्रमयोर्न,खचंमसो दश नांति विनोः॥रचिताश्व रत्नचयैर्मु कुराः,शुनमुक्तिवधूबहुकेलिकराः॥२॥
अर्थ:-हे मुनिसुव्रतनाथ नगवन् ! हे प्रनु, तमा राबन्ने चरणोना,जे दश नख ते रूपजे चंशे,ते रत्नोना समूहोथी रचेला, कल्याणकारी मुक्तिरूपी स्त्रीने थ त्यंत क्रीडा करवाना अरीसा जेम होय, तेम प्रका श पामे वे ॥२०॥
॥ शिखरिणी वृत्तम् ॥ स्फुटश्रीरोचिष्णुं शमरसनिमग्नेक्षाणयुगं, प्रस नास्यांनोज प्रदरणसमूहोङितकरम् ॥ विरक्तं रामाया निखिलजनसंतोषजनकं, नजे तं विश्वे शं नमिजिनवरं कल्मषहरम् ॥२॥

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