Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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अर्थः-साथलमा उत्तम वजना चिन्हवाला, पर्व तना नाश करवामां वजने धारण करनार, इंनी पेलें गर्वरूप पर्वतोना समूहोनो नाश करनार, अने देहधारी जेम धर्म होय, तेवा धर्मनाथ नगवा ननी हुं स्तुति करुं बुं ॥ १५॥
शांतिकांतिधृतिमुक्तिदं वरं, सांशं वितर मे तु सत्वरम् ॥ शांतिनाथ जिन शांतिका रक, रोगशोकनयमोहवारक ॥ १६ ॥
अर्थः हे शांतिने करनार ! हे रोग, शोक, नय, अने मोहने दूर करनार! हे शांतिनाथ जिन ! शांति, कांति, धीरज अने मुक्तिने आपनालं, तथा उत्तम एवं घणुं सुख मने तुरत आपो ॥ १६ ॥
॥ स्वागता छंद ॥ ज्योतिषांततिषु राजति सूर्य,स्तारकेषु च यथा ननु चंः॥वेगिनां मरुदिवाप्तजने षु, कुंथुनाथजिनराहि तथासौ॥२७॥ अर्थः-सर्व तेजस्वी वस्तुमा जेम सूर्य शोने से, अने ताराउमा जेम चंद शोने जे, अने वेगवाला

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