Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 28
________________ ( २० ) वलक्ष्मी शाणी रे ॥ प्राणी० ॥ भि० ॥ ४ ॥ ॥ अथ पञ्चम श्रीसुमतिजिनस्तवनं ॥ ॥ इमर बायबली रे ॥ ए देशी ॥ सुम ति जिणंदशं वीनती रे, जव पटवी दूर टाल ॥ दुं अनादी निगोदमा रे, जमीयो नादी काल ॥ सुमति जिन मुळ विनती अवधार ॥ १ ॥ ए प्रकरणी || सिध एकना साह्ययी रे, निक त्यो त्यांथी बाहार ॥ बादर स्थावरमां पड्यो रे, केम न प्राव्यो पार ॥ सुम० ॥ २ ॥ वि गजी मांदे वस्यो रे, पण थिरता नदी क्यां य ॥ पंचेंदीप पामीयो रे, पुण्योदय महिमा य ॥ सुम० ॥ ३ ॥ त्यां पण नरकमां ऊपन्यो रे, कर्म त अनुसार ॥ सागर तेत्रीश तिहां रह्यो रे, कष्ट तणो नदी पार ॥ सुम० ॥ ४ ॥ तीर्थ चगतिमांदें गयो रे, चढ्यो कसाईने द्वार ॥ बे दन भेदन त्यां सह्यां रे, केणें न लिधी मोरी सार ॥ सुम० ॥५॥ देव तो जवें दुःखघणुं रे,

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