Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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(२१) मरणनो नय मनमांद्य ॥ मनुष्यगतीमां आवी यो रे, शुनोदयन साह्य ॥सुम० ॥६॥देश अनारजमां थयो रे, नीचकुलें अवतार ॥ त्यां पण तुम दरिसन विना रे, गयो जन्मारो हार ॥ सुम० ॥ ७॥णविध नाटक बढु परे रे, ना च्यो दीनदयाल ॥ हवे तुम चरणमां आवीयो रे, नव अटवी दूर वार ॥ सुम०॥॥विन ती सुणी प्रनु माहरी रे, सेवकनी करो सार॥ महेर करी मुऊ कीजीये रे, शिवलमी शिरदा र॥सुम ॥॥ मुऊ मन सरोवरमा वसो रे, हंस तणी परें आज ॥ तेदथी मुझ दूरे टले रे, उष्ट कर्मनां काज ॥ सुम॥१०॥इति॥
॥अथ षष्ठ पद्मप्रनजिनस्तवनं ॥ ॥ जगजीवन जगवालहो ।। ए देशी॥ प अप्रन जिन वालदा, देवपूजित पादपीठ लाल रे॥ शक्ति रहित नक्ति कलं, त्रपा थईने अ दीठ लाल रे॥ पद्म ॥१॥॥ गुण समुह गु

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