Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 15
________________ पदार्थोमां जेम पवन शोने , तेम यथार्थ बोलना राउमां ते कुंथुनाथ नगवान शोने में ॥ १७ ॥ ॥ वसंततिलका छंद ॥ आलंबयष्टय वारजिनेश्वरस्यां, गुट्योदशापि पदपद्मयुगस्य यस्य॥पापौघकर्दमनिमऊदशेष जंतु, निष्कासनायदि बनुर्बलवत्तरास्ताः॥१॥ ___ अर्थः-पापना समूहरूप गारामां बुडी जाता स र्व प्राणियोने ते पापरूप गारामांथी बाहेर काढवा माटे, अरनामना जिनेश्वरना चरणकमलयुग्मनी, अत्यंत बलवाली दश अांगलीयो, जेम टेको देवानी लाकडीयो होय तेवी रीतें शोना पामे ले ॥१७॥ ॥ मालिनी वृत्तम् ॥ नयनकुमदचंः कीरवर्णानकायो, बढुलसुखजयंताद्देवलोकाच्युतो यः॥ स जयति जगदीशो मल्लिनाथो जिनंजे, जनशमसुखकारः कर्मवल्लीकुगरः॥१॥ अर्थः-नेत्ररूप कुमुदनामना कमलने चंइसमान, पोपटना वर्णसमान शरीरवाला, अत्यंत सुखयुक्त

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