Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s):
Publisher: ZZZ Unknown
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अर्थः स्फट शोनाथी प्रकाशमान. शांतरसमांम ग्र नेत्रयुग्मवाला, प्रसन्नमुख कमलवाला, शस्त्रौघव र्जित हाथवाला, स्त्रीथी वैराग्य पामेला, सर्व प्राणि योने संतोष थापनार, जगतना ईश्वर, अने पापने हरनार. ते नमि जिनवर (निमिनाथ नगवान) तेने हुँ नचुं बु॥ ११ ॥
॥ हरिणी वृत्तम् ॥ प्रणमत जनाः श्रीमन्नेमि विकस्वरवैनवं, प्रवणहृदयं प्राणित्राणे मनोदरतायुतम् ॥न वजलनिधौ दीपप्रायं श्रितं गिरिरैवतं, परि जनजनैःसाई त्यक्तस्वराजिमतीप्रियम॥२॥
अर्थः-हेजनो विकस्वरवैनववाला, प्राणियोना रामां तत्पर हृदयवाला बने मनोहर पणाथी युक्त, तेमज संसाररूप समुना (हीप) बेटसमान, गिरनार पर्वतमां निवास करनार, अने (परिजन) संबंधियोनी साथे पोतानी राजिमती नामनी प्रिय स्त्रीनो त्याग करनार. शोजायमान नेमि नगवान्ने तमें नमस्कार करो ॥ २२ ॥

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