Book Title: Jinendra Stuti Ratnakar
Author(s): 
Publisher: ZZZ Unknown

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Page 11
________________ जीयाः सुपार्श्वदेव त्वं, सुवर्णद्युतिधारकः ॥ मोहांधानां जडानां च, तमोनाशाय नास्करः। ___ अर्थः-सुवर्णसमान कांतिने धारण करनार, मो हथी आंधला अने जडबुद्धिवाला पुरुषोना, अज्ञा नरूप अंधकारने मटाडवामां सूर्यसमान, हे सुपार्श्व देव नगवन ! तमें जय पामो ॥ ७ ॥ समुल्लसितशोनाट्य, ज्ञास्यश्वंलाग्नः॥ चंञ्चारुस्फुरबायः, पातु चंप्रनः प्रनुः॥७॥ अर्थः-अत्यंत नन्नास पामेला, शोनाथी युक्त चं इमा समान मुखवाला चश्ना चिन्हवाला अने चं नी पढ़ें सुंदर तथा चमकती कांतिवाला, चंप्रन ना मना परमेश्वर रहाण करो ॥ ७ ॥ स्फुरम्यतमश्रीकः, सर्वदर्शी जिनोत्तमः ॥ आंतरारिविघाताय, ददातु सुविधिर्विधिम्॥॥ अर्थः स्फुरायमान अत्यंत सुंदर शोनावाला सर्व वस्तुने जाणनार,अने जिनोमां उत्तम एवा हे सुविधि नामना नगवान्, अंतःकरणमा रहेला कामक्रोधादि शत्रुना नाश माटे उपाय आपो ॥ ५ ॥

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