________________
२४
सुनं वैन सोही लहै ज्ञान मेवा ||८|| जपं जाप ताके नहीं पाप लागें, धरै ध्यान ताके सबै दोष बिना तोहि जाने धरे भव तुम्हारी कृपा ते सरें काज
भागें ।
दोहा
गणधर इंद्र न कर सकें, तुम विनती भगवान । 'द्यानत' प्रीति निहारकें, कीजे आप समान ||१०||
घनेरे, मेरे || ||
विषापहार स्तोत्र
आतम लीन अनन्त गुण,
गणधर
स्वामी ऋषभ जिनेन्द्र |
नित प्रति वन्दित चरण युग,
सुर नागेन्द्र नरेन्द्र ॥१॥ विश्व सुनाथ विमल गुण ईश,
विहरमान बन्दों जिन बीस । गौतम शारदमाय, वर दीजं मोहि बुद्धि सहाय || २ ||
सिद्ध साधु सत गुरु आधार,
करूँ कवित्त आत्म उपकार ।