________________
७६
विद्यमान श्री बीस तीर्थंकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं ॥ दीपम || ये धूप अनल में खेने से, कर्मों को नहीं जलाएगी। निज में निज की शक्ति ज्वाला, जो राग द्वेष नसाएगी ॥ उस शक्ति दहन प्रगटाने को, श्री देव शास्त्र गुरु को ध्याऊं । विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं ॥ धूपम् ।। पिस्ता, बादाम, श्रीफल लवंग, तुव चरण निकट मैं ले आया । आतम. रस पीने निजगुणफल मम मन अब उनमें ललचाया ॥ अब मोक्ष महाफल पाने की, श्री देव शास्त्र गुरुको ध्याऊं । विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं || फलम् ॥ अष्टम वसुधा पाने को, कर में ये आठों द्रव्य लिये । सहज शुद्ध स्वाभाविकता में, निज में निज गुण प्रगट भये ॥ यं अर्धं समर्पण करके मैं, श्री देवशास्त्र गुरु को ध्याऊं । विद्यमान श्री बीस तीर्थकर, सिद्ध प्रभु के गुण गाऊं ॥ अर्धम् ॥
जयमाला
नसे घातिया कर्म अरहंत देवा,
करे सुर असुर नर मुनि नित्य सेवा ।
दरस ज्ञान सुख बल अनन्न के स्वामी,
अनेकान्तमय
छियालीस गुण युत महा ईश नामो ।
तेरी दिव्य वाणी सदा भव्य मानी,
महामोह विध्वंसिनी मोक्षदानी | द्वादशांगी बखानी,
नमो लोक माता श्री जैन बानी ।